कोल्हापुर नगर निगम (सोर्स: सोशल मीडिया)
Kolhapur Municipal Corporation Election News: कोल्हापुर में नगर निगम चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। विभिन्न दलों ने मोर्चा बनाना, बैठकें करना, गुट बनाना और गठबंधन बनाना शुरू कर दिया है। सत्ता पर नज़र गड़ाए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है और यह स्पष्ट होता जा रहा है कि नगरसेवक पद के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए परीक्षा की घड़ी आ रही है।
फिलहाल, महाविकास अघाड़ी के घटक दल, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) और शिवसेना (यूबीटी) ने एक साथ आने के लिए प्रारंभिक चर्चाएं शुरू कर दी हैं। हालांकि, गठबंधन का भविष्य सीटों के बंटवारे, स्थानीय स्तर की गुटबाजी और पार्टी निष्ठा पर निर्भर करेगा।
दूसरी ओर, भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का संकल्प व्यक्त किया है और संगठनात्मक मजबूती के साथ अपनी ताकत दिखाने की तैयारी शुरू कर दी है।
कुल मिलाकर, कोल्हापुर नगर निगम के चुनाव में सभी की निगाहें पार्टी गठबंधनों पर टिकी हैं। चुनाव की अंतिम तस्वीर इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन किसके साथ जाता है और सीटों का बंटवारा कैसे तय होता है, लेकिन यह तय है कि इस पूरी प्रक्रिया में इच्छुक उम्मीदवारों की परीक्षा होगी।
इस बीच, कोल्हापुर की राजनीतिक परंपरा गठबंधनों और गुटों से समृद्ध रही है। स्थानीय नेताओं के व्यक्तिगत समीकरणों का महत्व बढ़ रहा है। इसलिए, आगामी चुनावों में सफलता न केवल पार्टी पर, बल्कि स्थानीय स्तर पर समूह की ताकत, मतदाताओं से जुड़ाव और वित्तीय समर्थन पर भी निर्भर करेगी।
इस समय, कांग्रेस और एनसीपी के पूर्व पार्षद नगर पालिका में अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ जगहों पर, शिवसेना-शिंदे गुट भी समीकरण बदल सकता है।
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एक ओर, शिंदे गुट के भाजपा के साथ जाने की संभावना है, वहीं उद्धव ठाकरे गुट के कांग्रेस और शरद पवार गुट के साथ गठबंधन करने की संभावना है। इस पृष्ठभूमि में, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि इच्छुक उम्मीदवारों का राजनीतिक भविष्य गठबंधन के फैसले पर निर्भर करेगा।
पार्टीवार सीट बंटवारे के समीकरण को समायोजित करते समय कई लोगों को अपनी मनचाही सीटें नहीं मिलेंगी। इसलिए, नाराजगी, दलबदल या बगावत के संकेत मिल रहे हैं। खासकर, जो लोग बरसों से जनसंपर्क के ज़रिए लोगों को लामबंद कर रहे हैं, उन्हें अपनी सीट छिनने का डर सता रहा है। ऐसे में उन्हें अपनी वफ़ादारी दिखानी होगी, तो कुछ को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव लड़ने का विकल्प चुनना पड़ सकता है।