छत्रपति शिवाजी महाराज (डिजाइन फोटो)
Biography of Chhatrapati Shivaji Maharaj: महान मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र आज भी सभी के लिए प्रेरणादायी है, उन्होंने अपनी वीरता के बल पर ही मराठा सामाज्य की स्थापना की। आज यानी 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज की 395वीं जयंती है। आइए शिवाजी महाराज की वीरता और नेतृत्व की गाथाओं को स्मरण करते हुए, उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं और उपलब्धियों पर एक नजर डालते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग, पुणे में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले एक मराठा सरदार थे और उनकी माता जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवा को धर्म, नीति और मराठा संस्कृति के मूल्यों की शिक्षा दी। बचपन से ही शिवाजी महाराज ने महाभारत और रामायण जैसी धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर वीरता और नेतृत्व की कहानियों से प्रेरणा ली।
छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रथम महत्वपूर्ण विजय 1645 में हुई जब उन्होंने तोरणा किले पर अधिकार किया। इस विजय ने उन्हें एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार के रूप में पहचान दिलाई। इसके बाद, शिवाजी महाराज ने कोंडाना (सिंहगढ़), पुरंदर, और रायगढ़ जैसे महत्वपूर्ण किलों पर विजय प्राप्त की।
6 जून 1674 को शिवाजी महाराज का रायगढ़ में राज्याभिषेक किया गया और उन्हें ‘छत्रपति’ की उपाधि दी गई। राज्याभिषेक के बाद, शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिए कई युद्ध लड़े और अपने राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की। उन्होंने मुगलों, आदिलशाही और निजामशाही जैसे शक्तिशाली शासकों के साथ संघर्ष किया और अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की।
शिवाजी महाराज का सबसे प्रमुख संघर्ष मुगलों के साथ था। 1666 में, औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरा में कैद कर लिया। हालांकि, शिवाजी महाराज ने अपनी बुद्धिमानी से मुगलों की कैद से बच निकलने का रास्ता निकाला। उन्होंने औरंगजेब को चकमा देकर चादर और टोकरी के माध्यम से आगरा के किले से भागने में सफलता प्राप्त की। इस घटना ने शिवाजी महाराज की वीरता और रणनीतिक कौशल को और भी मजबूती दी।
शिवाजी महाराज की वीरता की कई गाथाएं हैं, जिनमें से एक प्रमुख घटना है अफजल खान के साथ उनका युद्ध। अफजल खान ने शिवाजी महाराज को धोखे से मारने का प्रयास किया, लेकिन शिवाजी महाराज ने अपनी चुस्त दिमाग और तलवार की कुशलता से उसे मार गिराया। इसके अलावा, सूरत पर उनकी छापामारी और कोंडाणा (सिंहगढ़) किले पर तानाजी मालुसरे के नेतृत्व में विजय उनकी वीरता के उदाहरण हैं।
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3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज का निधन हो गया। उनके पुत्र संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी उनकी वीरता, नेतृत्व और रणनीतिक कौशल की गाथाएं लोगों के दिलों में जीवित रहीं।
छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवन यात्रा हमें साहस, धैर्य और नेतृत्व के महत्व को सिखाती है। उनकी वीरता और संघर्ष की गाथाएं आज भी हमें प्रेरित करती हैं और उनके आदर्श हमारे लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।