प्रतीकात्मक तस्वीर (AI Generated)
Latur Historical Discovery: महाराष्ट्र के लातूर स्थित एक कॉलेज संग्रहालय में संरक्षित 518 साल पुराने ताम्रपत्र को हाल ही में पहली बार पढ़ा गया है। इस ऐतिहासिक खोज से बहमनी काल के दौरान दो व्यक्तियों के बीच हुई एक बड़ी लड़ाई के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
शोधकर्ता कृष्णा गुडाडे ने इस दस्तावेज का अध्ययन किया और बताया कि यह ताम्रपत्र वर्ष 1507 ईस्वी का है। इस अभिलेख में दो व्यक्तियों के बीच हुई हिंसक लड़ाई, खंडागले की मौत और उनकी पत्नी के सती होने का मार्मिक विवरण दर्ज है।
यह ताम्रपत्र लातूर के राजर्षि शाहू कॉलेज के संग्रहालय में रखा गया था। यह अभिलेख मध्यकाल में प्रचलित मराठी लिपि ‘मोडी’ में लिखा गया है। इसमें 30 पंक्तियों में पूरी घटना को दो ताम्रपत्रों पर अंकित किया गया है।
ताम्रपत्र में दर्ज विवरण के अनुसार, यह हिंसक झड़प लातूर शहर के बाहरी इलाके में स्थित आज के खड़गांव ग्राम में हुई थी। यह स्थान चांदपीर दरगाह के पास दुधल झील के निकट स्थित है। यह मुठभेड़ ‘सवारू’ और ‘विठोबा खंडागले (जाधव)’ नामक दो व्यक्तियों के बीच हुई थी।
इस हिंसक झड़प का परिणाम यह हुआ कि खंडागले की मौत हो गई। इसके बाद एक और दुखद घटना हुई; खंडागले की पत्नी मौके पर ही सती हो गई थीं, जिसका विवरण भी ताम्रपत्र में दर्ज है। इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज को कुलकर्णी नाना दाम गांव के एक व्यक्ति द्वारा लिखा गया था, और इसकी तिथि ‘‘17 मोहर्रम” अंकित है।
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राजर्षि शाहू महाविद्यालय की इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. अर्चना टाक-जोशी ने इस खोज के महत्व को रेखांकित किया है। उन्होंने कहा कि बहमनी काल के दौरान का 518 साल पुराना यह ताम्रपत्र केवल एक स्थानीय युद्ध का दस्तावेजीकरण मात्र नहीं है।
बल्कि, यह उस समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन पर भी महत्वपूर्ण रूप से प्रकाश डालता है। इस तरह के अभिलेख मध्यकालीन भारतीय इतिहास, विशेष रूप से महाराष्ट्र के स्थानीय इतिहास, को समझने के लिए अमूल्य स्रोत सिद्ध होते हैं।