वाचनालय (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Gondia News: गांव-गांव में में वाचन संस्कृति संरक्षित करने का कार्य सार्वजनिक वाचनालयों ने किया, लेकिन सरकार उन्हें वैसी सहायता नहीं देती जैसी मिलनी चाहिए। सरकार ने गांव-गांव में वाचनालय आंदोलन चलाया, लेकिन वाचन आंदोलन फिलहाल कमजोर पड़ गया है। हजारों गांवों में आज भी वाचनालय नहीं हैं। जो हैं, वे भी बंद होने की कगार पर हैं।
बढ़ती कागज की कीमतें, महंगे पुस्तकें, बिजली बिल, जगह का किराया, कर्मचारी वेतन इन सभी का तालमेल नहीं होने से संचालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। वाचनालय अनुदान दोगुना करने, नए वाचनालयों को मंजूरी देने, दर्जा बदलने, कर्मचारियों को सेवा शर्तें लागू कर वेतन श्रेणी देने आदि मांगें मंजूर करने का आग्रह वाचनालय कर्मचारियों ने किया है।
वाचनालयों को मिलने वाले अनुदान में 50 प्रतिशत राशि वेतन के लिए और 50 प्रतिशत वेतनतर खर्च के लिए होती है। लेकिन इसमें से वाचनालय कर्मचारियों को परिवार के भरण-पोषण के लिए भी वेतन नहीं मिलता, जिससे ये कर्मचारी वर्तमान में आर्थिक संकट में हैं। कर्मचारियों को मिलने वाले अल्प वेतन के कारण कर्मचारी टिकना और नए कर्मचारी मिलना मुश्किल हो गया है।
यह भी पढ़ें – खड़े ट्रक से ट्रैवल्स की टक्कर, महिला की मौत, 43 यात्री घायल, धोबीसराड में NH-53 पर हुआ हादसा
कर्मचारियों को छह घंटे काम करना पड़ता है और वेतन बहुत कम मिलता है। इस कम वेतन में उनका गुजारा नहीं होता। ये वाचनालय ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। अनुदान में निरंतरता न होने के कारण कई दिनों तक वेतन नहीं मिलता। लोगों से उधार पैसे लेकर वाचनालय संचालकों को कर्मचारियों का वेतन देना पड़ता है।
2012 की वाचनालय राजस्व जांच में 25 हजार वाचनालयों को अकार्यक्षम घोषित करने से उनका अनुदान बंद हो गया और भी कुछ वाचनालयों के लेखा-बंद न देने के कारण वे भी बंद होने की कगार पर हैं। इससे कई कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। महाराष्ट्र सरकार ‘अ, ब, क, ड’ इन श्रेणियों के अनुसार अनुदान देती है।
जिसमें ‘ड’ श्रेणी के वाचनालय को 30 हजार रुपये वार्षिक अनुदान मिलता है, सरकारी नियमों के अनुसार वहां के कर्मचारियों को 30 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वेतन मिलता है। इसके कारण वर्तमान में वाचनालय कर्मचारी अल्प वेतन पर जीवनयापन कर रहे है।