गैरआदिवासियों को जमीन देने का विरोध (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Gadchiroli News: हाल ही में गड़चिरोली जिले के दौरे पर आए राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने आदिवासियों की जमीनें गैरआदिवासियों को किराये पर देने की प्रस्ताव लाने संदर्भ में सरकार विचार कर रही है, ऐसी जानकारी दी। इसे आदिवासी बहुल समाज संगठन द्वारा विरोध किया जा रहा है। यह प्रस्ताव अस्वीकार करें, ऐसी मांग अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद महिला शाखा गड़चिरोली व जंगोरायताड़ आदिवासी महिला संगठन की ओर से जिलाधिकारी के मार्फत मुख्यमंत्री को भेजे ज्ञापन में की है। इस दौरान कहा कि सरकार का उक्त प्रस्ताव आदिवासी के अधिकारों का उल्लंघन करने वाला, संविधान के तत्वों के खिलाफ जाने वाला, सामाजिक न्याय को बाधा पहुंचाने वाला है।
जमीन आदिवासी समाज के लिए केवल आजीविका का साधन ही नहीं है, बल्कि उनके सांस्कृतिक, सामाजिक व ऐतिहासिक अस्तित्व की आधार भूमि है। भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र की जमीन गैर आदिवासी की ओर हस्तांतरित न हो, इसकी गारंटी दी है। इसमें राज्यपाल, राष्ट्रपति को ही विशेष नियम करने के अधिकार है। राज्य सरकार मंत्रिमंडल को वह अधिकार नहीं है। ग्रामसभा के अनुमति के बगैर अनुसूचित क्षेत्र की जमीन हस्तांतरण, बिक्री या किराये पर देना वैद्य नहीं है। सरकार का प्रस्ताव पेसा कानून के प्रावधानों को विरोध करने वाला है।
आदिवासियों की जमीन किसी भी हाल ही में गैरआदिवासियों को किराये तत्व पर लीज पर जमीन देना कानून के खिलाफ होने से मुख्यमंत्री फडणवीस तत्काल सुध लेकर सरकार का उक्त प्रस्ताव तत्काल अस्वीकार करें, अन्यथा सरकार को आदिवासी के रोष का सामना करना पड़ेगा। ऐसी बात उपजिलाधिकारी सूर्यवंशी के मार्फत मुख्यमंत्री को भेजे ज्ञापन से दी है। ज्ञापन सौंपते समय महिला शाखा की जिलाध्यक्ष पुष्पलता कुमरे, विद्या दुग्गा, मालता पुडो, जंगोरायताड आदिवासी महिला संगठन की अध्यक्ष आरती कोल्हे, रेखा तोडसे, शामला घोडाम, तनुजा कुमरे, रोहिणी मसराम, अर्चना टेकाम आदि उपस्थित थे।
आदिवासी की जमीनें बगैर आदिवासियों को किराये पर देने का प्रस्ताव/निर्णय अस्वीकार करें, पांचवीं अनुसूची व पेसा कानून के तहत ग्रामसभा के अधिकारों का संरक्षण कायम रखे, महाराष्ट्र जमीन राजस्व संहिता 1966 के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करें, आदिवासियों की जमीन का संरक्षण करने सरकार स्पष्ट, कटिबद्ध व संविधान संमत नीति घोषित करें, ऐसी मांग संगठना ने मुख्यमंत्री को भेजे ज्ञापन में की गई है।
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ज्ञापन में महिला संगठन ने कहा कि सरकार का यह प्रस्ताव यानी आदिवासियों के अस्तित्व पर परिणाम करने वाला है। महाराष्ट्र आदिवासी लैंड (रिस्टोरेशन) एक्ट 1974 कानून का उद्देश्य ही गैरआदिवासी की ओर से जमीन वापस लेकर वह आदिवासियों को वापस देना है। ऐसे में किराये पर जमीन देने की प्रक्रिया कानून के उद्देश्य के खिलाफ है। जमीन आदिवासी की जीवन रेखा है। आजीविका, उपजीविका, संस्कृति, सामाजिक व ऐतिहासिक वारसा से जुड़ी होने से किराये पर जमीन देने पर आदिवासी अपनी पहचान, स्वायतला व परंपरागत जीवनशैली गंवा देंगे, इससे यह निर्णय सामाजिक न्याय, समता व संविधान के बुनियादी तत्व को बाधा पहुंचाने वाला है।