विधान भवन (सौजन्य-सोशल मीडिया)
भंडारा: राजनीतिक दलों की अब विधान परिषद के चुनाव पर उनकी निगाहें लगी हुई है। इसलिए आगामी नगर परिषद और जिला परिषद के चुनाव की रणनीति बनाई जा रही है। वैसे विधान परिषद के चुनाव के बारे में अभी से कुछ कहना व्यर्थ है। लेकिन यह चुनाव होंगे, इतना जरूर है।
आपको बताते चले कि पिछली बार परिणय फुके इस सीट से निर्वाचित हुए थे। 6 साल का उनका कार्यकाल कब से समाप्त हो गया है और उसके बाद विधान परिषद के भंडारा-गोंदिया जिले की सीट का चुनाव नहीं हुआ है। यह सीट अभी भी खाली पड़ी है। अगर विधान परिषद की इस सीट के चुनाव हो गए होते तो मतदाताओं की संख्या बेहद कम होती। क्योंकि दोनों ही जिले के नगर परिषदों पर प्रशासकों का राज है और नगर परिषदों में नगर सेवकों की संख्या शून्य है। केवल जिला परिषद सदस्य और पंचायत समिति के सभापतियों के भरोसे मतदान कराना कतई उचित नहीं था।
पिछले कुछ महीने पहले नगर परिषद के चुनाव की कुछ उम्मीद बंध गई थी। मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी होने के कुछ ही दिन बाद देवेंद्र फडणवीस ने नप के चुनाव जल्द होने की उम्मीद जताई थी। वैसे नगर परिषद का कार्यकाल समाप्त होने को तीन साल बीतने के बाद भी चुनाव नहीं हुए हैं। ओबीसी आरक्षण के सवाल को लेकर यह चुनाव लंबित हुए हैं। न्यायालय ने पिछले महिने ही इस बारे में चल रही सुनवाई आगे बढा दी है। यह सुनवाई होने के बाद ही कुछ संभव हो सकता है या नहीं भी हो सकता। लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है।
हाल ही में जिला परिषद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष और सभापति के चुनाव हुए हैं। इसलिए अब जिला परिषद के आम चुनाव को ढाई साल का समय बचा है। राजनीतिक दल हमेशा ही जोड-तोड के प्रयास में लगे रहते हैं। उनके लिए चुनाव लड़ना और लड़वाना सबसे आसान काम है। इसलिए जिला परिषद और नगर परिषद के आम चुनाव को लेकर अभी से रणनीति बिठाने का काम कई राजनीतिक दलों ने शुरू कर दिया है।
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इसमें भाजपा और कांग्रेस प्रमुख है। वही कुछ दल इन प्रमुख दलों का खेल बिगाड़ कर अपनी जुगत जमाने का प्रयास करेंगे। खासतौर से शिवसेना(शिंदे) की निगाहें अपनी पार्टी के विस्तार पर लगी हुई है। गोंदिया जिले में दो पूर्व विधायकों को अपने पाले में लाने के बाद तीसरे पर नजर जमा चुकी है। वैसे ही भंडारा जिले में भी कुछ जुगाड़ हो जाए तो यह अतिरिक्त शक्ति शिंदे सेना के खाते में जुड़ सकती है। इस लिहाज से प्रयास किए जाने की चर्चा शुरू है। बता दे कि अभी जिला परिषद या नगर परिषद के चुनाव हो जाए तो शिंदे सेना एक ऐसे बडे़ दल के रूप में उभर सकती है जो कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चुनौती बन सकती है। लगभग यही स्थिति राष्ट्रवादी कांग्रेस की भी है।