प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Sambhajinagar MIM Shiv Sena Alliance: छत्रपति संभाजीनगर राज्य की राजनीति में आगामी महानगरपालिका चुनाव को एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस ए इतेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के प्रदेशाध्यक्ष तथा पूर्व सांसद इम्तियाज जलील ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सामने आगामी महानगरपालिका चुनाव को लेकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।
जलील ने कहा कि महायुति को सत्ता से बाहर करने के लिए समान विचारधारा वाले दलों को एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहिए। जलील के इस प्रस्ताव को उबाठा के वरिष्ठ नेता अंबादास दानवे ने यह कहकर ठुकरा दिया कि हमारे और एमआईएम की विचारधारा कभी एक नहीं हो सकती।
ऐसे में गठबंधन का सवाल ही नहीं। इम्तियाज जलील ने यह भी कहा कि यदि विपक्षी दल बिखरे रहेंगे तो इसका सीधा फायदा सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन को मिलेगा। उन्होंने संकेत दिया कि धर्मनिरपेक्ष दलों की मतभेद भुलाकर तालमेल पर विचार करना चाहिए, ताकि महायुति को हराया जा सके।
हालांकि, ठाकरे गुट के वरिष्ठ नेता अंबादास दानवे यह कहकर इस प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया हम कभी गठबंधन नहीं कर सकते। ठाकरे गुट के नेता ने स्पष्ट किया कि एमआईएम की राजनीति समाज को बांटने वाली है।
ठाकरे गुट का कहना है कि वह केवल उन्हीं दलों के साथ राजनीतिक सहयोग करेगा, जिनकी विचारधारा समावेशी और लोकतांत्रिक हो। एमआईएम को लेकर पार्टी के भीतर पहले से ही असहमति रही है, और इसी वजह से प्रस्ताव को तुरंत नकार दिया गया, इधर, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी चुनावों को देखते हुए विभिन्न दल अपने-अपने समीकरण मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए है।
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एमआईएम द्वारा दिया गया यह प्रस्ताव भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इधर, जलील के इस प्रस्ताव के बाद शहर में यह चर्चा शुरु जारी है कि यह प्रस्ताव भी राजनीति का एक हिस्सा है। जलील व दानवे को भी पता है कि एमआईएम च उबाटा कभी भी एक साथ आकर चुनाव नहीं लड़ सकते।
उबाठा की छवि सालों से कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में रहीं। यह बात अलग है कि सन 2020 में उबाठा ने भाजपा से नाता तोड़ने के बाद उसकी छवि बहुत सॉफ्ट हुई है। लोकसभा व विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने उबाठा को बहुत अधिक मतदान किया।
इसी बात को सामने रखकर एमआईएम के प्रदेशाध्यक्ष जलील ने उबाठा के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा। लेकिन, एमआईएम की छवि भी कट्टर विचार धाराओं वाली मानी जाती है। ऐसे में उबाठा कभी भी एमआईएम के साथ गठबंधन नहीं कर सकती।
इस घटनाक्रम के बाद राज्य की राजनीति में बयानबाजी और तेज होने की संभावना है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि विपक्षी दल किस दिशा में अपनी रणनीति तय करते हैं और चुनावी मैदान में कौन किसके साथ नजर आता है।