अब तक स्पष्ट आदेश नहीं। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
अमरावती: महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्कूलों में तीसरी भाषा को लेकर जारी अस्पष्ट रुख और शिक्षण मंत्री दादा भुसे के हालिया बयान पर ‘मराठी के व्यापक हित के लिए आंदोलन ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। संगठन का कहना है कि सरकार “तीसरी भाषा की अनिवार्यता” पर अपनी अड़ियल सोच से पीछे हटने को तैयार नहीं है, जबकि इसका राज्यव्यापी विरोध हो चुका है।
शालेय शिक्षण मंत्री दादा भुसे ने हाल ही में स्पष्ट किया कि सरकार अब भी तीसरी भाषा को लेकर विभिन्न भारतीय भाषाओं और आवश्यक सुविधाओं पर अध्ययन कर रही है। लेकिन शिक्षण विभाग की ओर से अब तक कोई स्पष्ट और संशोधित शासन निर्णय जारी नहीं किया गया है, जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
डॉ. श्रीपाद भालचंद्र जोशी, जो इस चळवळ के प्रमुख संयोजक हैं, कहते हैं “राजनीतिक दलों, शिक्षण संस्थाओं, शिक्षक संगठनों और विशेषज्ञों ने केवल हिंदी नहीं, बल्कि तीसरी भाषा की ज़बरदस्ती का भी विरोध किया है। इसके बावजूद सरकार अड़ियल रवैया क्यों अपना रही है?” उन्होंने इस बात पर भी सवाल उठाया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में कहीं भी हिंदी को अनिवार्य करने का निर्देश नहीं है। फिर भी राज्य की शैक्षणिक और संशोधन परिषद NEP का नाम लेकर जनता को भ्रमित क्यों कर रही है? “राज्य के अधिकांश नागरिक इस थोपने के विरोध में हैं। इसके बावजूद सरकार अपनी अड़ियल सोच नहीं छोड़ रही, यह महाराष्ट्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।”
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डॉ. जोशी ने मुख्यमंत्री, शालेय शिक्षण मंत्री और मराठी भाषा मंत्री को भेजे पत्र में यह माँग की है कि
सरकार स्पष्ट रूप से घोषणा करे कि न हिंदी और न ही कोई अन्य तीसरी भाषा अनिवार्य होगी।
इस विषय में तत्काल स्पष्ट शासन निर्णय जारी किया जाए।
NEP 2020 के आधार पर राज्य शैक्षणिक अनुसंधान परिषद ने नए पाठ्यक्रम में पहली कक्षा से ही तीसरी भाषा (मुख्यतः हिंदी) को अनिवार्य करने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव का तीव्र विरोध होते ही शिक्षण मंत्री दादा भुसे ने ‘अनिवार्य’ शब्द को स्थगित करने की घोषणा की, लेकिन अब तक कोई नया आदेश जारी नहीं हुआ है।