गीले अकाल में सामाजिक संवेदनशीलता का संकल्प
Akola District: इस वर्ष महाराष्ट्र में अतिवृष्टि ने व्यापक तबाही मचाई है। खेत बह गए, फसलें नष्ट हो गईं, पशुधन और घर उजड़ गए। किसानों की आंखों के सपने और मेहनत के पसीने की बूंदें पलभर में पानी में समा गईं। ऐसे संकट के समय में उत्सव मनाने की बजाय समाज के प्रति संवेदनशीलता दिखाना ही सच्ची संस्कृति है और यही उदाहरण अकोला के युवाओं ने प्रस्तुत किया।
हर वर्ष भव्य रावण दहन का आयोजन करने वाले नीलेश देव मित्र मंडल और स्वराज्य मित्र मंडल ने इस वर्ष का आयोजन रद्द कर बिर्ला राम मंदिर परिसर में प्रतीकात्मक रावण दहन किया। यह आयोजन 2 अक्टूबर 2025 को शाम 7 बजे गंभीर और भावनात्मक वातावरण में संपन्न हुआ। इस अवसर पर पूर्व गृह राज्यमंत्री व अकोला के पालकमंत्री डॉ। रणजीत पाटिल, जयंतराव सरदेशपांडे, नरेश बियाणी, नीलेश देव, एड। गिरीश गोखले, अजय शास्त्री सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। रावण दहन के समय नागरिकों की आंखों में आंसू थे। यह केवल एक परंपरा नहीं थी, बल्कि समाज में व्याप्त अहंकार, अन्याय और दुष्ट प्रवृत्तियों के अंत का प्रतीक था।
कार्यक्रम के बाद मंदिर में रखी गई दानपेटी में नागरिकों ने भावनापूर्ण रूप से “फूल नहीं, फूलों की पंखुड़ियाँ” अर्पित कीं। इस दान से एकत्रित राशि को मुख्यमंत्री सहायता निधि बाढ़ग्रस्त मदद के लिए जिलाधिकारी को 13 अक्टूबर को धनादेश के रूप में सुपूर्द किया गया।
इस अवसर पर नीलेश देव, एड.गिरीश गोखले, अजय शास्त्री और मित्र मंडल के अन्य सदस्य उपस्थित थे। यह प्रसंग केवल एक दान का नहीं, बल्कि समाज की संवेदनशीलता और अकोला की करुणा का प्रतीक था। हर वर्ष जिस रावण दहन पर खर्च होता है, इस बार वह राशि समाजोपयोगी कार्यों में लगाई गई। “सच्ची दिवाली तब है, जब किसान के घर में दीपक जले।” यह भावनात्मक संदेश इस आयोजन के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया गया।
ये भी पढ़े: दीपावली से पहले सोयाबीन की खरीदी करें, अन्यथा विधायकों के घरों का घेराव किया जाएगा
हर वर्ष नीलेश देव और एड। गिरीश गोखले के नेतृत्व में भव्य रावण का निर्माण होता है। लेकिन इस बार उन्होंने परंपरा को संवेदनशीलता से जोड़ा और खर्च को समाज सेवा की दिशा में मोड़ा। यह पहल अकोला में सामाजिक जिम्मेदारी का अनूठा उदाहरण बन गई है। इस योगदान की सराहना नागरिकों, सामाजिक संस्थाओं और प्रशासन द्वारा की जा रही है।
परंपरा को निभाते हुए समाज के लिए कार्य करना यह भावना राज्यभर के युवाओं के लिए प्रेरणादायी बन रही है। रावण दहन केवल एक पुतले को जलाना नहीं है, बल्कि यह समाज में व्याप्त अन्याय, अहंकार और असंवेदनशीलता को समाप्त करने का संकल्प है। यह संकल्प बिर्ला राम मंदिर के आंगन से उठकर अब पूरे महाराष्ट्र में गूंज रहा है।