महाराष्ट्र ने हिंदी का मान बढ़ाया (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Akola News: महाराष्ट्र ने हिंदी का मान बढ़ाया है, हिंदी भाषा के संवर्धन में महाराष्ट्र का योगदान सबसे बड़ा है, यह विचार हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत नवभारत से विशेष बातचीत के दौरान साहित्यकार डॉ. रामप्रकाश वर्मा ने प्रकट किए। उन्होंने कहा कि, इसके दो मुख्य कारण हैं, पहला कारण हिंदी के विकास में लोकमान्य तिलक, काका कालेलकर, विनोबा भावे, मधुकरराव चौधरी का हिंदी के प्रचार, प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन सभी महापुरुषों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रबल समर्थन किया था। इन्हीं के प्रयत्नों के कारण हमारे देश में हिंदी फली फूली। आज भी पुणे की संस्था राष्ट्रभाषा समिति केंगरे और सुनील देवधर के प्रयत्नों से बड़ा काम कर रही है।
पुणे के ही गोपाल दाभोलकर ने हिंदी व्याकरण और वर्तनी संबंधी पुस्तकें लिखकर हिंदी की परीक्षाएं आयोजित कर के बड़ा काम किया है। पुणे स्थित बालभारती संस्था जहां पाठ्यक्रम की पुस्तकें निर्मित की जाती हैं वह स्वामीनाथ सिंह और गोपाल दाभोलकर की देन है। पश्चिम महाराष्ट्र में टी.के. सूर्यवंशी ने जो कार्य हिंदी में किया है और अपनी 80 वर्ष की उम्र में वे हिंदी की सेवा अनाम होकर कर रहे हैं वह समर्पण अन्यत्र कहीं भी दुर्लभ है। सातारा नगर के बीचोबीच हिंदी शिक्षक बैंक की भव्य इमारत और वहां चल रहे पुस्तकालय तथा अन्य कार्यों को देखकर लोग चकित हो जाते हैं। हिंदी की अपनी जमीन, हिंदी का अपना भवन, हिंदी शिक्षक बैंक मैंने पूरे भारत में और कहीं नहीं देखी हैं।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा भी शहर के बीच में 15 एकड़ जमीन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हिंदी को पहुंचा रही हैं। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय इसी की देन है। इस तरह राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा का कार्य अनुकरणीय तथा सराहनीय है। दूसरा कारण प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन, नागपुर में सन 1975 में आयोजित किया गया था। जिसके सूत्रधार अनंत गोपाल शेवड़े रहे हैं। इन दोनों दृष्टिकोणों से यह कहा जा सकता है कि हिंदी के लिए जितना काम महाराष्ट्र ने किया है उतना अन्य किसी प्रांत में देखा नहीं गया है।
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यह उल्लेखनीय है कि स्थानीय हिंदी कवि तथा लेखक डॉ.रामप्रकाश वर्मा की करीब 50 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसी तरह महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें उनकी पुस्तक के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इसके अलावा भी कई पुरस्कार डॉ. वर्मा को मिल चुके हैं। अ।भा। स्तर पर आयोजित की गयी कई काव्य गोष्ठियों और संगोष्ठियों में उन्होंने काव्य पाठ किया है।