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आज है ‘गणगौर तीज’, जानिए सही तिथि और पूजा की विधि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं...

  • By navabharat
Updated On: Mar 24, 2025 | 05:01 PM

PIC: Instagram

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-सीमा कुमारी

इस वर्ष ‘गणगौर तीज’ (Gangaur Teej) का व्रत 4 अप्रैल, दिन सोमवार को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में गणगौर पूजा का विशेष महत्व है। ये त्योहार खासतौर पर, राजस्थान में मनाया जाता है। वैसे तो इस त्योहार की शुरुआत होली के दूसरे दिन से ही हो जाती है। ये त्योहार होली के दूसरे दिन से लेकर अगले सोलह दिनों तक मनाया जाता है और चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर के साथ ये पूर्ण होता है।

इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और अपने सुख-सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं, जबकि विवाह योग्य कन्याएं मनपसंद वर या जीवनसाथी की कामना से ‘गणगौर तीज व्रत’ रखती हैं। आइए जानें गणगौर तीज का महत्व पूजा सामग्री, विधि और शुभ मुहूर्त।

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शुभ, सौभाग्य और मंगल के पावन पर्व ’गणगौर तीज’ की आपको हार्दिक बधाई! #Gangaur

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– Shivraj Singh Chouhan (@chouhanshivraj) 4 Apr 2022

शुभ मुहूर्त

तृतीया तिथि आरंभ: 03 अप्रैल, रविवार दोपहर 12:38 बजे से

तृतीया तिथि समाप्त : 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

पूजा-मुहूर्त

शुभ मुहूर्त आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार, दोपहर 11:59 बजे से

शुभ मुहूर्त समाप्त: 04 अप्रैल, सोमवार,दोपहर 12:49 बजे पर

पूजा-विधि

गणगौर तीज के दिन ही भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इसी वजह से इस दिन का खास महत्व है। इस दिन सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती हैं और उनका पूजन किया जाता है।

व्रत धारण करने से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना की जाती है। इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लम्बी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है। फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर (स्थापना करके) इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं- कांच की चूड़ियां, महावर, सिन्दूर, रोली, मेंहदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि चढ़ाया जाता है।

गणगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं। लड़की की शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और इन गुनों तथा सास के कपड़ों का बयाना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती हैं। ससुराल में भी वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बयाना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है।

महत्व

गणगौर तीज कुंवारी और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य और अच्छे वर की कामना करने के लिए करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की आराधना की जाती है। 17 दिन  चलने वाले इस पर्व का समापन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर होता है। कुंवारी, विवाहित और नवविवाहित महिलाएं इस दिन नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर गीत गाती हैं और गणगौर को विसर्जित करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएं पति से सात जन्मों का साथ, स्नेह, सम्मान और सौभाग्य पाने के लिए करती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी यानि भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। इसलिए यह त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस दिन से सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानि गण एवं माता पार्वती यानि गौर बनाकर उनका प्रतिदिन पूजन करती हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर यानि शिव पार्वती की विदाई की जाती है। जिसे गणगौर तीज कहा जाता है।

Today is gangaur teej know the exact date and method of worship

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Published On: Apr 04, 2022 | 07:15 AM

Topics:  

  • Gangaur Vrat

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