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ये है ‘दत्तात्रेय जयंती’ का सही शुभ मुहूर्त और पूजा विधि, जानिए इसकी पौराणिक मान्यता

  • By मृणाल पाठक
Updated On: Dec 18, 2021 | 08:00 AM

भगवान दत्तात्रेय जयंती

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-सीमा कुमारी

हर साल मार्गशीर्ष यानी, अगहन महीने में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ‘दत्तात्रेय जयंती’ (Dattatreya Jayanti) मनाई जाती है। इस साल यह जयंती 18 दिसम्बर, शनिवार को है।  

यह जयंती ‘भगवान दत्तात्रेय’ के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा (Lord Brahma), विष्णु (Lord Vishnu) और शिव जी (Lord Shiva) के संयुक्त अंश से मिलकर उत्पन्न हुए थे | इनके तीन सिर और छह हाथ हैं. इनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की ही शक्तियां और गुण समाहित है  आइए जानें ‘भगवान दत्तात्रेय’ व्रत का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि और इसकी महिमा

शुभ मुहूर्त

इस दिन चंद्रमा मिथुन राशि में रोहिणी नक्षत्र और साध्य और शुभ योग रहेगा। पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 18 दिसम्बर 2021, शनिवार 7:24 am मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि समाप्त 19 दिसम्बर 2021, रविवार 10:05 am।

पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।

पूजा करने से पहले चौकी को गंगाजल से साफ करें और उसमें आसन बिछाएं।

चौकी पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर रखें, इस तस्वीर पर फूलों की माला चढ़ाएं।

उन्हें पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें। इसके बाद मन्त्रों का जाप करें। मंत्र इस प्रकार हैं -‘ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा’ दूसरा मंत्र ‘ॐ महानाथाय नमः’। मंत्रों के जाप के बाद भगवान से कामना की पूर्ति की प्रार्थना करें। इस दिन उपवास रखना चाहिए।

धर्म ग्रंथों के मुताबिक, ‘भगवान दत्तात्रेय’ की विधि-विधान से पूजा करने से हर मनोकामना  पूरी होती हैं। इसके अलावा, भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं।

कथा

मान्यता है कि, महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया की महिमा जब तीनों लोक में होने लगी तो माता अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए माता पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के अनुरोध पर तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे। तीनों देव साधु भेष रखकर अत्रिमुनि आश्रम में पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की। 

तीनों देवताओं ने माता के सामने यह शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराए। इस पर माता संशय में पड़ गई। उन्होंने ध्यान लगाकर जब अपने पति अत्रि मुनि का स्मरण किया, तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रि मुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने शर्त के मुताबिक उन्हें भोजन कराया। वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां दुखी हो गईं।

तब नारद मुनि ने उन्हें पृथ्वी लोक का वृत्तांत सुनाया। तीनों देवियां पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसके बाद तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है। 

This is the correct auspicious time and method of worship of dattatreya jayanti know its mythological belief

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Published On: Dec 18, 2021 | 08:00 AM

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  • Dattatreya Jayanti

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