विश्व डाक दिवस का महत्व जानिए (सौ.सोशल मीडिया)
World Post Day 2024: आज का दिन डाक यानि पोस्ट के नाम समर्पित है यानि इसकी उपयोगिता को बताने के लिए दुनियाभर में आज डाक दिवस मनाया जा रहा है। मैसेज के जमाने में चिट्टियां आज दरवाजे पर दस्तक दे ही जाती है, डाकिए साइकिल पर सवार आज भी घर-घर जाकर सरकारी दस्तावेज और चिट्टियां भेजते ही है। दुनिया में डाक का महत्व जितना बरकरार है उतना ही भारत में आज 166 साल हो गए डाक का इतिहास गौरवशाली बना हुआ है। डाक के माध्यम से जहां पर पैगाम भेजे जाते थे वहीं पर पोस्टकार्ड के बिना तो शायद लोगों की बातें साझा हो पाती थी। चलिए जानते हैं भारत में डाक के सफर के बारे में।
भारत में पहले डाकघर का नाता पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लिया गया हैं जहां पर 1727 में पहला आधुनिक डाकघर खोला गया इसके बाद कई परिवर्तन आने वाले सालों में हुए। इसमें 1774 से 1793 के बीच कोलकाता, चैन्ने और मुंबई प्रेसिडेंसी में GPO खोले गए। वहीं पर भारत के पहले डाकघऱ की अवधारणा 1 अक्टूबर 1854 को रखी गई थी जहां पर यह डाक, बैंकिंग, जीवन बीमा, मनीऑर्डर या रिटेल सर्विस के जरिए लोगों के करीब आया। भारतीय डाक विभाग देश के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण विभागों में से एक कहा जाता है जो अपने 166 साल पूरे करने के बाद आज भी उपयोगिता बिखेरे हुए है।
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राजधानी दिल्ली में सबसे बड़ा डाकघर यानि मुख्यालय स्थित है जो नई दिल्ली 110001 पिन कोड नंबर वाले गोल डाकघर के नाम से जाना जाता है। इस डाकघर को हेरिटेज बिल्डिंग कहा जाता है जिसका इतिहास पुराना है 1934 तक यह वायसराय का कैंप पोस्ट ऑफिस था। आजादी के बाद 1948 में इसे प्रधान डाकघर या GPO का दर्जा मिला । दरअसल इसके अधीन संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, कनॉट प्लेस और प्रगति मैदान से लेकर कई अहम मंत्रालय आते है और इसका इतिहास काफी पुराना हैं।
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यह डाकघर मुख्यालय होने की वजह से बेहद व्यस्त नजर आता है यहां पर इस डाकघर के दायरे में करीबन 79 लेटर बॉक्स लगाए गए है साथ ही रोज 75 पोस्टमैन अपनी-अपनी बीट में यहां से औसतन 40 हजार चिट्ठियां बांटते हैं, जिसमें करीब 25 हजार सामान्य डाक होती हैं और बाकी स्पीड पोस्ट या रजिस्ट्री के भी शामिल होते है।
डाकघर में , डाकिए केवल इंसान की ही नहीं भगवान और नदी के नाम भी पोस्ट करते हैं इसके लिए कई मंदिरों में जाकर डाक बांटते है डाक दरअसल भगवान के भक्त मनोकामना लिखकर भेजते हैं। डाकघर की स्थिति की बात की जाए तो, 21 साल पहले वह संसद भवन में रोजाना 3 बोरे (50 किलो का एक बोरा) डाक बांटते थे।
हाल के बरसों में यह घटकर एक बोरा के करीब रह गई है। आप नहीं जानते होगें डाक विभाग में नोबेल अवॉर्ड विजेता सी. वी. रमण, मुंशी प्रेमचंद, राजिंदर सिंह बेदी, देवानंद, नीरद सी चौधरी, महाश्वेता देवी, दीनबंधु मित्र, डोगरी लेखक शिवनाथ, कृष्ण बिहारी नूर, कर्नल तिलकराज, विष्णु स्वरूप सक्सेना जैसी सैकड़ों हस्तियां डाक विभाग में कर्मचारी या अधिकारी के रुप में काम कर चुके है यह डाक विभाग के इतिहास में दर्ज किया गया है।