सीमा कुमारी
नवभारत डिजिटल टीम: आदि शक्ति मां दुर्गा (Ma Durga) को समर्पित नवरात्र (Navaratri 2023) हिंदू धर्म में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही, आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू हुए नवरात्र के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। जिसका अष्टमी व नवमी को विसर्जन किया जाता है।
मान्यता है कि इस कार्य को पूरे विधि-विधान से करना चाहिए। इससे मां खुश होकर घर में सुख-समृद्धि का वरदान देती है। शास्त्रों के अनुसार जिस तरह कलश स्थापना करते समय विधि विधान के ध्यान रखा जाता है। वैसे ही कलश विसर्जन करते समय कुछ बातों का जरूर ध्यान रखें। ऐसा करने से मां दुर्गा रुष्ट नहीं होगी। ऐसे में आइए जानें कलश विसर्जन करते समय किन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
ज्योतिषियों की मानें तो अष्टमी व नवमी के व्रत संपन्न होने के बाद हवन और फिर कन्याओं को भोजन ज़रूर करवाएं। अपनी हैसियत अनुसार कन्याओं को भेट दें। कन्याओं में से किसी एक कन्या को भगवती के नौ अवतारों का एकीकृत स्वरूप मानते हुए उनका विशिष्ट पूजन करें। कन्या पूजन के बाद, देवी भगवती का सपिरवार ध्यान करें।
क्षमा याचना करें कि हे देवी, हम मंत्र, पूजा, विधान कुछ नहीं जानते। अपनी सामर्थ्यानुसार और अल्पज्ञान से हमने आपके व्रत रखे और कन्या पूजन किया। हे देवी, हमको, हमारे परिवार, कुल को अपना आशीर्वाद प्रदान करो। इस घर में सदैव विराजमान रहो। हमको सुख-समृद्धि, विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, यश प्रदान करो। इसके बाद ‘देवी सूक्तम’ का पाठ करते हुए यह मंत्र विशेष रूप से पढ़ें।
या देवि सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
मां दुर्गा और कलश की विधिवत पूजा करने के बाद विसर्जन करना बेहद जरूरी है। कलश उठाते समय इस मंत्र को बोलते रहें- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
सबसे पहले कलश के ऊपर रखें नारियल को धीमे से उठाएं और अपने माथे में लगाएं। इसके बाद नारियल, चुनरी आदि घर में मौजूद पत्नी, मां या फिर बहन की गोद में रख दें। इसके बाद आम के पत्तों से कलश में मौजूद पानी को पूरे घर में छिड़क दें। इस बात का ध्यान रखें कि जल छिड़कने की शुरुआत किचन से करें। क्योंकि यहां पर मां अन्नपूर्णा के साथ मां लक्ष्मी का वास होता है। इसके बाद घर के हर एक कोने में छिड़क दें। बस, बाथरूम, शौचालय में न छिड़के। इसके बाद बचे हुए डल को तुलसी या फिर किसी पेड़ में डाल दें।
कलश में जो सिक्का था उसे उठाकर माथे से लगाकर अपनी तिजोरी या पर्स में रख लें और हमेशा रखे रहें। कलश और अखंड ज्योति में बंधे कलावा को धीमे से खोलकर अपने हाथों में बांध लें। यह देवी का ‘सिद्ध रक्षाकवच’ कहलाता है, जो हर मुसीबत से रक्षा करता है। कवच सूत्र बांधते हुए जो भी देवी मंत्र याद हो, उसका उच्चारण करते रहे। यह सूत्र घर के सब सदस्य पहन सकते हैं।
इस तरह नवरात्र व्रत का परायण संपन्न होता है। अष्टमी और नवमी से व्रत का परायण करने वाले इस विधि से कलश विसर्जन करेंगे तो उनको लाभ प्राप्त होगा। बता दें कि अष्टमी या नवमी तिथि को व्रत परायण करने वालों अखंड ज्योति को विजयदशमी के पूजन तक प्रज्जवलित रखना चाहिए। क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ‘विजयदशमी’ को भगवान राम ने अपराजिता देवी का पूजन किया था।