माता रानी को बताशे का भोग लगाने की क्यों परंपरा है (सौ.सोशल मीडिया)
Shardiya Navratri 2025: देवी शक्ति का महापर्व शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से शुरू होकर 1 अक्टूबर को कन्या पूजन के साथ समाप्त हो जाएगा। नवरात्रि का त्योहार दैवीय शक्ति की उपासना और साधना करने के लिए विशेष समय होता है। इस दौरान माता रानी के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनके मनपसंद भोग और प्रसाद चढ़ाते हैं।
अगर परंपराओं की बात करें तो, नवरात्रि के दौरान माता रानी को बताशे का भोग भी खासतौर से चढ़ाया जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं नवरात्रि के दौरान माता रानी को बताशे का भोग लगाने की क्यों परंपरा है।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, माता रानी को बताशे का भोग लगाने की मुख्य उद्देश्य यह है कि बताशा मिष्ठान पवित्रता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह हल्का होने के साथ बहुत जल्दी ही पच जाता है, जिस वजह से इसे सात्त्विक नैवेद्य की श्रेणी में रखा जाता है।
नवरात्रि के दौरान एक मान्यता ये भी है कि, मां दुर्गा को बताशा अर्पित करने से सभी तरह के कष्टों का निवारण होता है।
ज्योतिष-शास्त्र में बताशे का संबंध चंद्रमा और शुक्र ग्रह से है। नवरात्रि के दौरान माता रानी को बताशा अर्पित करने से चंद्रमा की अशुभ स्थिति में सुधार होता है। वहीं, शुक्र ग्रह की कृपा से घर-परिवार में प्रेम के साथ सामंजस्य और आर्थिक समृद्धि भी आती है।
जिन जातकों की कुंडली में शुक्र और चंद्रमा कमजोर होते हैं, उन्हें नवरात्रि के दौरान माता रानी को प्रसाद स्वरूप बताशा अर्पित करना चाहिए।
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नवरात्रि में माता रानी को बताशा अर्पित करना मात्र धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी काफी लाभकारी माना जाता है। बताशा सरल और सुलभ प्रसाद होने के कारण भक्तों के जीवन को मिठास से भर देता है।