कैंपस में छात्रों की आत्महत्या कब तक (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा गठित तथ्यान्वेषण समिति ने इस साल दो नेपाली छात्राओं की आत्महत्या के लिए भुवनेश्वर के डीम्ड विश्वविद्यालय केआईआईटी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि ‘विश्वविद्यालय की अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों के कारण एक छात्रा की मौत हुई और प्रशासन की कार्रवाई ‘आपराधिक दायित्व’ के दायरे में आती है। समिति ने कठोर सिफारिशें की हैं, जिनका संज्ञान लेते हुए आयोग विश्वविद्यालय के विस्तार पर रोक लगाने, दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है।
प्रोफेसर नागेश्वर राव के नेतृत्व वाली यूजीसी समिति ने कैंपस का दौरा, स्टेकहोल्डर्स से वार्ता और विस्तृत समीक्षा के बाद 20 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे अब सार्वजनिक किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यौन उत्पीड़न, अपर्याप्त होस्टल सुविधाओं, अत्यधिक छात्रों को प्रवेश देना, छात्रों के विरुद्ध क्रूर बल प्रयोग करना आदि शिकायतों पर विश्वविद्यालय कानून के अनुरूप कार्रवाई करने में नाकाम रहा, जिनकी वजह से यह घटनाएं हुई। समिति ने पाया कि इन्फ्रास्ट्रक्चर व प्रशासन में गंभीर कमियां थीं, होस्टल सुविधाएं ‘निम्नस्तरीय’ थीं। 3 छात्रों को एक छोटे से कमरे में ठूंसा गया था।
इसमें शक नहीं है कि अधिकारियों को इन अपराधों के लिए कानूनन सजा मिलनी चाहिए, जैसा कि यूजीसी समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि घटना के घटित होने के बाद ही यह सब क्यों होता है? छात्र जब शिकायत करते हैं तब किसी स्तर पर उनकी सुनवाई क्यों नहीं होती है? ओडिशा में 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा के भयावह आत्मदाह के बाद अब खबर आई है कि ग्रेटर नोएडा में भी एक 21 वर्षीय मेडिकल की छात्रा ने आत्महत्या कर ली है। बालासोर, ओडिशा की घटना, भुवनेश्वर की घटना से अलग है, जिसके बारे में यूजीसी की रिपोर्ट आई है।
बालासोर में एक 20 वर्षीय छात्रा ने शिकायत की थी कि फकीर मोहन (स्वायत्त) कॉलेज में इंटीग्रेटेड बीएड विभाग के प्रमुख समीरा कुमार साहू उनका यौन उत्पीड़न कर रहे हैं, लेकिन कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति ने छात्रा की शिकायत को निरस्त कर दिया, जिसके बाद 12 जुलाई को छात्रा ने आत्मदाह कर लिया, जिसे लेकर 14 जुलाई को पूरे देश का गुस्सा फूट पड़ा। पुलिस ने अब साहू व कॉलेज के प्रधानाचार्य दिलीप घोष को गिरफ्तार किया है। जांच जारी है, लेकिन अब इस सबका क्या फायदा? लड़की तो अपनी जान से गई। जब वह जिंदा थी, तब ही उसकी शिकायत का संज्ञान लेने की जरूरत थी। शिकायतों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति को बदलने की जरूरत है। विश्वविद्यालय को पहली ही शिकायत पर लड़के को सजा देने का अधिकार था। सजा देने की बजाय उन्होंने लड़के का पक्ष लेते हुए जबरन अवैध समझौता कराया। इसकी वजह से लड़की ने आत्महत्या की।
16 फरवरी को बीटेक (तीसरे वर्ष) की नेपाली छात्रा प्रकृति लमसल अपने होस्टल के कमरे में मृत पाई गई थी। इसके बाद केआईआईटी विश्वविद्यालय के होस्टल ही में 2 मई को एक अन्य नेपाली छात्रा ने आत्महत्या की थी। इन्हीं घटनाओं की जांच करने के लिए ही यूजीसी ने राव समिति गठित की थी। ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी में 21 वर्षीय मेडिकल की छात्रा ने 18 जुलाई की रात को खुदकुशी कर ली, क्योंकि फैकल्टी के कुछ सदस्य उसके साथ अनुचित व्यवहार कर रहे थे। यह इस साल की 4 प्रमुख घटनाएं हैं, जो अखबारों की सुर्खियां बनीं। इन सभी में एक ही पैटर्न है।
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लड़की अत्याधिक दबाव व तनाव में थी, फैकल्टी या कॉलेज के ही अन्य सदस्य उसका यौन उत्पीड़न कर रहे थे, शिकायत करने पर उसे राहत नहीं मिली बल्कि शिकायत को अनदेखा कर दिया गया या ‘अवैध समझौता’ करा दिया गया। बालासोर के मामले में साथी छात्रों को मजबूर किया गया कि वह फैकल्टी सदस्य का साथ दें ताकि शिकायतकर्ता को अकेला किया जा सके। ग्रेटर नोएडा केस में आत्महत्या नोट है, जिसमें उत्पीड़न व अपमान के लिए प्रोफेसरों के नाम लिए गए हैं। जब मार्च में सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित कर रहा था, तो उसने नोट किया था कि छात्रों में खुदकुशी की घटनाएं किसानों की आत्महत्याओं से भी अधिक हो गई हैं और इस मुद्दे पर भी अधिक जिम्मेदारी कॉलेज प्रशासकों की होनी चाहिए।
लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा