लोकमाता 'देवी अहिल्याबाई होल्कर'( pic credit; social media)
Ahilyabai Holkar death Anniversary: भारतीय इतिहास अनेकों रानियों और उनके अद्भुत जीवन की गाथा गाता है। लोकिन एक रानी ऐसी भी है जिनकी कहानी इतिहास के पन्नों में कही दबी रह गई। इसके बारे में हम शायद बहोत ज्यादा नहीं जानते। आज की हमारी कहानी एक ऐसी रानी की है जिनके सम्मान में फेमस पोएट Jonna Baillie ने 1849 में लिखा था कि
In letter days from Brahma came,
To rule our land, a noble dame
Kind was her heart and bright her name,
Ahilya was her honoured name
अहिल्याबाई होल्कर की आज 230 वीं पुण्यतिथी है। आज ही के दिन 13 अगस्त सन 1795 में इस ‘वॉरियर क्वीन’ का निधन हुआ था। राजमाता अहिल्याबाई के योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता। मराठा साम्राज्य की इस देवी को लोग आज भी उनके शौर्य, विवेक, बुद्धिमत्ता के लिए जानते है। लेकिन उनकी जिंदगी के ऐसे कई किस्से है जो सिर्फ इतिहास के पन्नों तक ही सिमीत रह गये। लेकिन आज वक्त की दराज में रखे वही इतिहीस के पन्ने नवभारत आपके लिए खोलने जा रहा है। जिसके स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है कहानी मालवा की लोकमाता “देवी अहिल्याबाई होल्कर” की।
अहिल्याबाई का जन्म 1725 में जमखेड़ के चोंडी नाम के गांव में हुआ था। जो कि आज महाराष्ट्र के बीड जिल्हे में स्थित है। उनके पिता मानकोजीराव शिंदे गांव के पाटिल हुआ करते थे। उस समय लड़कियों को पढ़ने- लिखने का प्रचलन नहीं था। लेकिन, फिर भी मानकोजीराव शिंदे ने अहिल्या को घर पर ही पढ़ना लिखाना सीखाया।
अहिल्या किसी राज घराने में पैदा नहीं हुई थी फिर एक महारानी बनने का सफर कैसे शुरु हुआ? इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।
बात 18 वीं शताब्दी की है। औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों की शक्ति कम हो रही थी। और डेक्कन में मराठों का प्रभुत्व बढ़ रहा था। मराठों के नरेश सातारा में रहते थे। लेकिन वो सिर्फ ‘NOMINAL KING’ थे। जबकि सारी शक्ति प्रधानमंत्री पेशवा बाजीराव के हाथों में थी। जो कि पुणे से रूल कर रहे थे। पेशवा की आज्ञा से मराठी सरदार दक्षिण की सीमा पार कर उत्तर पर भी अधिकार जमा रहे थे।
मालवा और राजस्थान के अनेक राज्य मराठा सेना ने जीत लिए थे। इनमें से कुछ राज्य पेशवा बाजीराव ने अपने सरदारों को जागीर के रुप में दे दिए। और इन्ही में से एक थे ‘मल्हारराव होल्कर’। जिन्हें 1730 में मालवा की जागीर मिली। उन्होंने इंदौर को अपनी राजधानी बनाया और स्वतंत्र होल्कर राज्य की स्थापना की।
मल्हारराव के एक मात्र पुत्र थे, ‘खांडेराव होल्कर’। खांडेराव अपने पिता जैसे पराक्रमी नहीं थे और न ही उनकी राजकाज में अधिक दिलचस्पी थी। इसलिए मल्हार राव होल्कर ऐसी पुत्र वधु चाहते थे जो उनके बाद उनके पुत्र और होल्कर राज्य दोनों को ही संभाल सके।
इसी सिलसिले में एक बार एक मुहिम से वापस आते वक्त उन्होंने चौंडी गांव में पड़ाव डाला। शाम का समय था। गांव के शिव मंदिर में आरती हो रही थी। मल्हारराव कुछ समय के लिए वही ठहर गये। आरती एक 8 साल की बच्ची कर रही थी। जिसकी वाणी ने मल्हारराव के मन को मोह लिया था। उसे देखकर मल्हारराव सोचने लगे कि कितनी प्यारी बच्ची है, इतनी छोटी सी उम्र में चेहरे पर कैसी शांती और कितना तेज है।
मल्हारराव ने पास खड़े एक व्यक्ति से पूछा कि ये बच्ची कौन है? उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि शायद आप परदेसी मालूम होते है,जो हमारी अहिल्या को नहीं जानते! ये हमारे पटेल माकोजीराव शिंदे की बेटी ‘अहिल्याबाई’ है। इतना सुनते ही मल्हारराव मालकोजी राव शिंदे से मिलने उनके घर पहुंचे। मल्हारराव ने मालकोजीराव को अपना परिचय दिया। मालकोजी राव ने कहा कि आपको अपना परिचय देने की जरुरत नहीं है। भला आपको कौन नहीं जानता। मालकोजीराव ने मल्हारराव होल्कर को रात्री भोज के लिए न्योता दिया। मल्हारराव ने निमंत्रण तुरंत स्वीकार कर लिया।
इसके बाद मालकोजीराव शिंदे अहिल्याबाई को अपने पास बुलाते है और उन्हें पेशवा के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मल्हारराव होल्कर को प्रणाम करने के लिए कहते है। मल्हारराव होल्कर को अहिल्या इतनी भा गई कि वो उसे अपनी पुत्र वधु बनाने का प्रस्ताव मालकोजी शिंदे के सामने रखते है। जिसे मालकोजी सहज ही स्वीकार कर लेते है।
और इस तरह 8 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई गांव की एक साधारण कन्या से होल्कर राज्य की रानी बन जाती है। लेकिन अहिल्याबाई का जीवन इतना सरल नहीं होने वाला था। आने वाले समय में उन्हें जीवन की सबसे कठीन त्रासदी झेलनी थी।
इसके आगे की कहानी हम जानेंगे नेक्स्ट एपीसोड (14 अगस्त) में। जिसमें चर्चा होगी उनके शौर्य की, उस त्यागी हुई प्रथा की और उनके खिलाफ रचे षडयंत्र की। नवभारत की इस सीरीज में बने रहिए।