
2025 की चुनावी और राजनैतिक यात्राएं (डिजाइन फोटो)
Political marches of 2025: साल 2025 अपने अंतिम पड़ाव पर है। और जब समय का एक हिस्सा अंतिम पड़ाव पर हो तो उससे जुड़ी यादें स्वभावतः ही जेहन में कौंधने लगती हैं। सियासी लिहाज से भी यह साल बेहद ही महत्वपूर्ण रहा। ऐसे में अतीत की तरफ मुड़कर देखें तो साल 2025 भी हमारे बीच ऐसी अनगिनत यादें छोड़कर रुखसत हो रहा है।
इस साल यानी 2025 को दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव खास बनाया। तो पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के लिए माहौल भी इसी साल तैयार होना शुरू हो गया। सियासी पार्टियों और उनके नेताओं ने चुनावी फायदे के लिए कई राजनैतिक यात्राएं निकाली। किसी की यात्रा फायदेमंद साबित हुई, तो किसी को कुछ नहीं हासिल हुआ। तो चलिए जानते हैं इस साल की उन सियासी यात्राओं के बारे में सबकुछ…
साल 2025 की पहली सियासी यात्रा जन सुराज पार्टी की तरफ से प्रशांत किशोर ने निकाली। मई 2025 में उन्होंने जेपी की जन्मभूमि सिताब दियारा से इसकी शुरुआत हुई। जन सुराज की इस ‘बिहार बदलाव यात्रा’ में बेहतरीन माहौल दिखाई दिया। लेकिन यह माहौल चुनाव आते-आते गायब हो गया। नतीजे के तौर पर बिहार में 238 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पीके की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। सबसे खास तो यह कि दो सीटों के अलावा जन सुराज पार्टी के बाकी उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।
बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राज्य में ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ शुरू की। इस यात्रा में उन्होंने बिहार में हुए SIR और वोट चोरी को मुद्दा बनाया। राहुल की इस रैली में तेजस्वी यादव भी दिखाई दिए, लेकिन बाद में उन्होंने इस मुद्दे से किनारा कर लिया। जिसका संदेश जनता के बीच यह गया कि ‘महागठबंधन’ एक मुद्दे पर एकमत नहीं है। जिसका असर चुनाव में भी दिखाई दिया और कांग्रेस महज 6 सीटों पर सिमट गई। जबकि पिछले यानी 2020 में पार्टी ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
मतदाता अधिकार यात्रा (सोर्स- सोशल मीडिया)
राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ के तेजस्वी यादव के नजर आने के बाद जब सियासी गलियारों में यह चर्चा चली कि बिहार आरजेडी महागठबंधन में नंबर दो की पार्टी के पिछलग्गू हो गई है, तो तेजस्वी यादव भी अपना अलग रथ लेकर निकल पड़े। उन्होंने भी राज्य में ‘बिहार अधिकार यात्रा’ यात्रा शुरू की। इस यात्रा के जरिए उन्होंने 10 जिलों की सभी विधानसभा सीटों का दौरा किया। हालांकि, चुनाव नतीजों में यात्रा का असर नहीं दिखाई दिया। महागठबंधन में आरजेडी सिर्फ 25 सीटों पर ही विजयश्री हासिल करने में कामयाब हो पाई।
बिहार में जब चौतरफा चुनावी यात्राएं निकल रहीं थीं तो इसमें हैदराबाद से सांसद और AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी कहां पिछड़ने वाली थे। उन्होंने भी बिहार में ‘सीमांचल न्याय यात्रा’ शुरू की। सीमांचल वही इलाका था जहां 2020 के चुनाव में AIMIM पांच सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। लेकिन चुनाव के कुछ ही दिन बाद उसके 4 विधायकों ने आरजेडी का दामन थाम लिया। जिसके बाद यह कहा जा रहा था कि इस बार सीमांचल में ओवैसी खेल नहीं दिखा पाएंगे। लेकिन उनकी ‘सीमांचल न्याय यात्रा’ कामयाब हुई और AIMIM फिर एक बार 5 सीटें जीतने में कामयाब रही।
साल के 365 दिन और दिन के 24 घंटे चुनावी मोड में रहने वाली भारतीय जनता पार्टी ने कोई चुनावी यात्रा नहीं निकाली। क्योंकि वह जनता की नब्ज पकड़ना जानती है। इसीलिए उसने एक ऐसी यात्रा निकाली थी जिसने सबको चित कर दिया। बीजेपी ने इस यात्रा को ‘तिरंगा यात्रा’ का नाम दिया था। यह यात्रा 7 मई को भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में आतंक के खिलाफ किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के महिमा गान के लिए निकाली थी। इस यात्रा ने एक तरफ जनता के सेंटीमेंट को समेटा तो दूसरी तरफ यह संदेश भी दिया कि बीजेपी के लिए पार्टी और चुनाव से आगे देश है। इस यात्रा का परिणाम बिहार चुनाव में भी साफ दिखाई दिया।
तिरंगा यात्रा (सोर्स- सोशल मीडिया)
सियासी और चुनावी यात्राओं की फेहरिस्त में बिहार की सीएम नीतीश कुमार की ‘प्रगति यात्रा’ भी शामिल है। वैसे तो नीतीश ने यह यात्रा 2024 में ही शुरू की थी, लेकिन इसका चौथा और पांचवा चरण क्रमश: जनवरी और फरवी 2025 में हुआ। यात्रा के दौरान नीतीश कुमार ने जिले-जिले जाकर अपनी सरकार के दौरान किए गए कार्यों का बखान किया। नीतीश कुमार की यह यात्रा रंग लाई और बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में वह 85 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही। जबकि 2020 के चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू को महज 43 सीटें ही हासिल हुई थीं।
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साल 2026 में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन राजनैतिक दलों ने उसके लिए अभी से माहौल बनाना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में इस बार तमिलनाडु के सियासी संग्राम में अपनी नई नवेली ‘तमिलगा वेत्री कझगम’ पार्टी लेकर उतर रहे अभिनेता से नेता बने थलपति विजय ने भी ‘मैं आ रहा हूं’ यात्रा शुरू की। उनकी यात्रा के दौरान सड़कों पर जनता का हुजूम दिखा। लेकिन इसी यात्रा के तत्वावधान में करूर में हो रही एक रैली में भगदड़ मच गई। इस घटना में 41 लोगों की मौत हो गई।






