'द रेजिस्टेंस फ्रंट'-सांकेतिक तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों पर खतरनाक हमला किया है। इस हमले में अपुष्ट तौर पर 27 पर्यटकों की मौत हो गई है, जबकि कुछ लोग गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं। शुरुआती मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस हमले को 2 से 3 आतंकियों ने अंजाम दिया है, जो पुलिस या सेना की वर्दी में हैं। पहलगाम में हुए इस बर्बर आतंकी हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ यानी टीआरएफ ने ली है।
पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों के इशारे पर काम करने वाला टीआरएफ पिछले कुछ सालों से लगातार जम्मू-कश्मीर में हमले कर रहा है। जानकारी के मुताबिक यह आतंकी हमला मंगलवार दोपहर करीब 2.30 बजे हुआ। पहलगाम के बैसरन इलाके में पर्यटक घुड़सवारी कर रहे थे। तभी आतंकी वहां पहुंचे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। फिलहाल सुरक्षाबलों ने आतंकियों को पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन जारी है।
इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) लश्कर-ए-तैयबा का ही एक मुखौटा संगठन है। पाकिस्तान में रहने वाला शेख सज्जाद गुल इसका मुखिया है। उसके इशारे पर टीआरएफ का स्थानीय मॉड्यूल लगातार जम्मू-कश्मीर में हमले कर रहा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद टीआरएफ की शुरुआत एक ऑनलाइन यूनिट के तौर पर हुई थी।
माना जा रहा है कि टीआरएफ के गठन का मकसद लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई पिछले दरवाजे से इसकी मदद करती है। टीआरएफ ज्यादातर लश्कर के फंडिंग चैनलों का इस्तेमाल करता है। गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा में बताया था कि टीआरएफ यानी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन है।
यह साल 2019 में अस्तित्व में आया।’ इस संगठन को बनाने की साजिश सीमा पार से रची गई थी। टीआरएफ के गठन में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भी भूमिका रही है। इसका गठन इसलिए किया गया था, ताकि आतंकी हमलों में पाकिस्तान का नाम सीधे तौर पर न आए।
सांकेतिक तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हुआ था। इसके बाद पूरी दुनिया में पाकिस्तान बेनकाब हो गया था। इस हमले को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था। जब दुनियाभर से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा तो उसे समझ में आ गया कि उसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कुछ करना ही होगा। इसके बाद उसने ऐसा संगठन बनाने की साजिश रची, जो भारत में आतंक फैलाए और उसका नाम भी न आए। फिर आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) का गठन किया।
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने साल 2022 की अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया कि कश्मीर में सुरक्षा बलों के 90 से ज्यादा ऑपरेशन में 42 विदेशी नागरिकों समेत 172 आतंकी मारे गए। घाटी में मारे गए ज्यादातर आतंकी (108) द रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तैयबा के थे। इसके साथ ही आतंकी समूहों में शामिल होने वाले 100 लोगों में से 74 की भर्ती टीआरएफ ने की, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह से बढ़ते खतरे को दर्शाता है।
टीआरएफ का नाम पहली बार साल 2020 में कुलगाम में हुए नरसंहार के बाद सामने आया था। उस समय भाजपा कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हजाम की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। टीआरएफ कश्मीर में वही दौर वापस लाना चाहता है, जो कभी 90 के दशक में था।
टीआरएफ के आतंकी टारगेट किलिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते हैं ताकि बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर आने से बचें। 26 फरवरी, 2023 को संजय शर्मा अपनी पत्नी के साथ कश्मीर के पुलवामा में स्थानीय बाजार जा रहे थे, तभी आतंकियों ने उन पर गोलियां चला दीं। इस हमले में उनकी मौत हो गई।
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इस हत्या के पीछे रेजिस्टेंस फ्रंट का हाथ था। उसने संजय शर्मा की हत्या करने का एकमात्र कारण यह चुना कि वह कश्मीरी पंडित थे। साल 2019 में जब से यह आतंकी संगठन अस्तित्व में आया है, तब से यह दर्जनों आतंकी हमलों में शामिल रहा है।
यह घाटी में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को खास तौर पर निशाना बना रहा है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से फोन पर बात की है। उन्होंने उचित कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। गृह मंत्री ने एक आपात बैठक बुलाई है, जिसमें कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।