सुप्रीम कोर्ट (सोर्स- सोशल मीडिया)
Supreme Court on Anti Dowry Law: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के एक मामले की सुनवाई के दौरान दहेज विरोधी कानून पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यह देखते हुए कि दहेज की सामाजिक बुराई अभी भी समाज में व्याप्त है, यह दहेज विरोधी कानूनों के प्रभावी होने में असफलता को दर्शाता है। साथ ही, यह भी कहा कि कानून का दुरुपयोग महिलाओं द्वारा गलत इरादों के लिए किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इस विरोधाभास को सुलझाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे न्यायिक तनाव उत्पन्न हो रहा है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने दहेज हत्या के एक मामले की सुनवाई करते हुए इस गंभीर मुद्दे पर विचार व्यक्त किया। बेंच ने मामले में एक व्यक्ति और उसकी 94 साल की मां को दोषी ठहराया। यह मामला वर्ष 2001 का था, जिसमें एक 20 साल की महिला को कलर टीवी, मोटरसाइकिल और 15,000 रुपये नकद की दहेज मांग पूरी न करने पर जलाकर मार दिया गया था। लगभग 25 साल बाद इस मामले का निपटारा करते हुए कोर्ट ने पति को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन मां की वृद्धावस्था को देखते हुए उसे जेल भेजने से मना कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले के फैसले में हुई देरी पर चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने युवाओं में जागरूकता फैलाकर दहेज की बुराई से निपटने के लिए सामाजिक उपायों के लिए कई निर्देश दिए, क्योंकि कानून अब तक इस प्रथा को प्रभावी तरीके से रोकने में असफल रहा है। बेंच ने कहा कि एक ओर जहां दहेज कानून अप्रभावी साबित हुआ है, वहीं दूसरी ओर, दहेज निषेध अधिनियम के प्रावधानों का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है, खासकर IPC की धारा 498-A के साथ मिलकर, जो कि गलत इरादों को पूरा करने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है।
बेंच ने कहा कि दहेज कानून की अप्रभाविता और दुरुपयोग के बीच यह विरोधाभास न्यायिक तनाव का कारण बनता है, जिसे तुरंत हल करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, यह भी कहा कि दहेज की कुप्रथा समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी है, और यह रातों-रात बदलने वाली बात नहीं है। इसके लिए सभी संबंधित पक्षों, जैसे विधायिका, कानून प्रवर्तन एजेंसियां, न्यायपालिका और नागरिक समाज संगठन, से ठोस प्रयास की आवश्यकता है।
मामला एक 20 वर्षीय महिला नसरीन का था, जिसे केरोसिन तेल डालकर आग लगाई गई थी। शादी के एक साल के भीतर उसकी मौत हो गई थी। ट्रायल कोर्ट ने उसके पति और सास को दोषी ठहराया, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सजा को रद्द कर दिया और आरोपियों को बरी कर दिया। हाई कोर्ट का यह फैसला मरने वाली महिला के पिता के बयान पर आधारित था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी बेटी की शादी खुशी-खुशी हुई थी।
हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दहेज के लिए उत्पीड़न साबित हो जाता है और यह भी साबित हो जाता है कि उत्पीड़न उसकी मौत से ठीक पहले हुआ था, तो गवाहों में से किसी एक का यह बयान कि वह “खुश थी” आरोपियों को दोषी होने से नहीं बचा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में “खुश-खुश” शब्द का उपयोग गुमराह करने वाला है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि पूरा बयान पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि मृतिका अपने पिता के कहने पर ही ससुराल वापस गई थी, जहां उसे मारपीट का सामना करना पड़ा और दहेज की मांग की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ‘खुशी-खुशी’ शब्द के इस्तेमाल से गुमराह हुआ लगता है। अगर पूरी गवाही को पढ़ा जाए, तो यह साफ होता है कि मृतिका को अपने पिता ने समझाया था और वह अपनी इच्छा से ससुराल वापस गई थी। वहां उसे दहेज की मांग की गई और मारपीट की गई।
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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले को निपटने में 24 साल लग गए, और ऐसे कई और मामले होंगे जिनमें लंबी देरी हो रही है। पीठ ने सभी हाई कोर्ट से यह अनुरोध किया कि वे दहेज हत्या और संबंधित अपराधों के पेंडिंग मामलों की संख्या का आकलन करें और उनका जल्द से जल्द निपटारा करें।