ममता बनर्जी (कॉन्सेप्ट फोटो-डिजाइन)
Protest Against SIR: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम यानी SIR को लेकर जमकर बवाल मचा हुआ है। राज्य में सत्ताधारी पार्टी के सियासी विरोध के बीच अब बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) भी सड़क पर उतर आए हैं। सोमवार को राजधानी कोलकाता में बीएलओ ने निर्वाचन आयोग का कार्यालय घेर लिया। हालात ऐसे हो गए कि उन्हें संभालने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती करनी पड़ी। इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि SIR पर सवाल क्यों है और पश्चिम बंगाल में इतना बवाल क्यों है?
चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम (Special Intensive Revision) को लेकर हो रहे बवाल के पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। वो कारण क्या हैं? पश्चिम बंगाल में बवाल ज्यादा क्यों मचा हुआ है? एसआईआर का सियासी नफा-नुकसान किसे होने वाला है? इन सभी सवालों के जवाब हम आपको इस रिपोर्ट में देने का प्रयास करेंगे। तो चलिए जानते हैं…
विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि SIR मुख्य रूप से मुसलमानों को टारगेट करता है। बिहार में, SIR से 60 लाख नाम हटा दिए गए, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे, जिससे बंगाल में डर का माहौल बन गया। वेरिफिकेशन से मुर्शिदाबाद (70% मुस्लिम आबादी), मालदा (55%), और उत्तरी दिनाजपुर जैसे मुस्लिम-बहुल ज़िलों में माइग्रेशन बढ़ा है। बीजेपी का दावा है कि इससे 10 मिलियन नकली वोटर (मुस्लिम घुसपैठिए भी शामिल) हटेंगे।
बिहार में राहुल गांधी ने SIR को मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन तेजस्वी यादव ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। हालांकि, बंगाल के हालात बिहार से अलग हैं। बंगाल में 70 मिलियन से ज़्यादा वोटर हैं, और 5-10% नाम हटाने से टीएमसी के मुस्लिम वोट बैंक पर गहरा असर पड़ना तय है।
जिस तरह से बीजपी बंगाल में लगातार मज़बूत हो रही है, उससे लगता है कि इस बार कुछ परसेंट वोट भी टीएमसी की सरकार गिरा सकते हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने “खेला होबे” का नारा लगाकर बीजेपी को 77 सीटों (38 परसेंट वोट) पर रोक दिया, जबकि टीएमसी 48 फीसदी वोट के साथ 215 सीटें जीतने में कामयाब रही।
मतदाता सत्यापन करते हुए BLO (सोर्स- सोशल मीडिया)
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 12 सीटें जीतीं और 38.7% वोट शेयर हासिल किया, जो साफ तौर पर हिंदू वोटरों में बढ़ती नाराज़गी का संकेत है। अब, अगर SIR की वजह से गैर-कानूनी बांग्लादेशी घुसपैठियों को टारगेट किया जाता है, तो यह पक्का है कि टीएमसी के वोट बैंक को नुकसान होगा।
अगर यह मुद्दा 2026 के विधानसभा चुनाव का बड़ा फोकस बन जाता है, तो टीएमसी को कमजोर होने से कोई नहीं रोक पाएगा। SIR का दूसरा फेज 4 नवंबर, 2025 को शुरू हो गया है, जिसमें बूथ लेवल ऑफिसर वोटर लिस्ट को वेरिफाई करने के लिए घर-घर पहुंच रहे हैं। बंगाल में 7 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं, और अगर 5-10% नाम हटा दिए जाते हैं (जैसा बिहार में हुआ), तो इसका टीएमसी के मुस्लिम वोट बैंक पर गहरा असर पड़ना तय है।
बंगाल में वोटर लिस्ट हमेशा से विवादित रही है। पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट की समस्या 1970 के दशक से है, जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद लाखों शरणार्थी गैर-कानूनी तरीके से राज्य में बस गए थे। CPM सरकार (1977-2011) ने यह वोट बैंक बनाया था। 2002 के आखिर में, SIR के तहत 2.8 मिलियन नाम हटाए गए थे। बीजेपी नेताओं का कहना है कि उस समय ममता बनर्जी ने इसका स्वागत किया था। साफ है, ममता बनर्जी ने धीरे-धीरे सीपीएम के वोटरों पर कब्ज़ा कर लिया है। जो लोग पहले सीपीएम के लिए काम करते थे, वे अब ममता बनर्जी के लिए काम करने लगे हैं।
बीजेपी अब चाहती है कि SIR के तहत गैर-कानूनी वोटरों के नाम हटाए जाएं, जबकि ममता बनर्जी बिल्कुल नहीं चाहतीं कि ऐसा हो। SIR अब बंगाल में बीजेपी के लिए एक हथियार है। लेकिन जैसे 2002 में गैर-कानूनी वोटर्स को हटाने का सपोर्ट करने पर ममता बनर्जी को हमदर्दी मिली थी, वैसा ही इस बार बीजेपी के साथ भी हो सकता है। यह मुद्दा इतना सेंसिटिव है कि कोई भी नागरिक इस पर समझौता नहीं करना चाहता।
अगर SIR से 20-30 लाख नाम हटा दिए जाते हैं, तो टीएमसी के 85-90% मुस्लिम वोटों पर असर पड़ेगा। 2011 की जनगणना में बंगाल में 27% मुस्लिम थे, लेकिन अब उनके 31-33% होने का अनुमान है। टीएमसी को मुस्लिम-बहुल जिलों (मुर्शिदाबाद 70%, मालदा 55%) में 90% वोट मिलते हैं। SIR इन इलाकों से गैर-कानूनी नाम हटा देगा, जो टीएमसी के लिए नुकसानदायक है।
CAA की वजह से मतुआ समुदाय (बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थी) बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया है, क्योंकि ममता बनर्जी बार-बार कह चुकी हैं कि वह राज्य में CAA लागू नहीं होने देंगी। साफ है, SIR मतुआ वोटर्स को लेजिटिमेटाइज़ करेगा, लेकिन गैर-कानूनी मुस्लिम नाम हटाने से टीएमसी को नुकसान होगा।
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यदि ऐसा होता है तो सीमावर्ती जिलों में टीएमसी को कम से कम 100 सीटों पर इस बार काफी मुश्किल आने वाली है। यही वजह है ममता बनर्जी और उनकी पार्टी लगातार इसका विरोध कर रही है। अन्य राज्यों में भी विपक्षी वोटबैंक पर अस पड़ने की संभावना है, यहीं वजह कि वहां भी कमोबेस विरोध देखने को मिल रहा है।
इसके अलावा SIR प्रक्रिया को लेकर BLO के विरोध के पीछे समय सीमा और वर्क प्रेशर बताया जा रहा है। जिन राज्यों में SIR हो रहा है, वहां बीएलओ की आत्महत्या के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं। सभी मामलों में चुनाव आयोग की तरफ से कम समय सीमा में अधिक काम करवाने की बात सामने आई। जिसके बाद चुनाव आयोग ने SIR के लिए निर्धारित समयसीमा में सात दिन का इजाफा भी किया है।