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मैरिटल रेप को क्यों जुर्म नहीं मान रही मोदी सरकार, जानिए सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र ने क्यों कहा यह कानूनी नहीं, सामाजिक मुद्दा?

भारत में मैरिटल रेप बहस का नया मुद्दा बनने वाला है। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने जवाब में कहा कि वैवाहिक बलात्कार कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दा है। केन्द्र सरकार ने यह जवाब क्यों दिया है? इसके पीछे क्या कारण हैं? जानते हैं इस रिपोर्ट में।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Oct 03, 2024 | 08:37 PM

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नई दिल्ली: भारत में मैरिटल रेप बहस का नया मुद्दा बनने वाला है। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने जवाब में कहा कि वैवाहिक बलात्कार कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दा है। इस पर निर्णय लेने के लिए व्यापक हितधारकों से परामर्श की आवश्यकता है। मौजूदा कानूनों में महिलाओं के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। विवाह आपसी दायित्वों की संस्था है। केन्द्र सरकार ने यह जवाब क्यों दिया है? इसके पीछे क्या कारण हैं? जानते हैं इस रिपोर्ट में।

केंद्र ने तर्क दिया कि भारत में विवाह को आपसी दायित्वों की संस्था माना जाता है, जहां शपथ अपरिवर्तनीय मानी जाती है। विवाह के भीतर महिलाओं की सहमति वैधानिक रूप से संरक्षित है, लेकिन इसे नियंत्रित करने वाले दंडात्मक प्रावधान अलग हैं। वैवाहिक बलात्कार की शिकार महिला के लिए अन्य कानूनों में भी पर्याप्त उपाय हैं। धारा 375 के अपवाद 2 को हटाने से विवाह संस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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केंद्र ने मौजूदा भारतीय बलात्कार कानून का समर्थन किया, जिसमें पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के लिए अपवाद बनाया गया है। केंद्र ने कहा कि यह मुद्दा कानूनी से ज्यादा सामाजिक है, जिसका सीधा असर आम समाज पर पड़ता है। अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित भी कर दिया जाता है, तो भी सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इस पर फैसला सिर्फ सरकार ही ले सकती है।

धारा 375 के अपवाद 2 पर बहस

दरअसल, शीर्ष अदालत वर्तमान में वैवाहिक बलात्कार मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता पर दिल्ली उच्च न्यायालय के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रही है। पिछले साल, सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता से संबंधित वैवाहिक बलात्कार मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।

याचिकाकर्ताओं का तर्क

समाजिक कार्यकर्ता रूथ मनोरमा सहित याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अपवाद ने महिलाओं की यौन संबंध बनाने की सहमति को कमजोर कर दिया है और शारीरिक अखंडता, स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया था, जबकि न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने इसे बरकरार रखा था।

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जुलाई में, सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 23 मार्च के फैसले पर भी रोक लगा दी थी। जिसमें अपनी पत्नी के साथ बलात्कार और जबरन यौन संबंध बनाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप को खारिज करने से इनकार कर दिया था।

केन्द्र सरकार ने क्यों लिया यह स्टैंड?

वैवाहिक बलात्कार के पर केन्द्र के इस स्टैंड को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। अव्वल यह कि भारत में महिलाओं से जुड़े कानूनों का दुरुपयोग होता रहा है। इसमें तीन तलाक, दहेज प्रथा जैसै कानून शामिल हैं। इसके इतर चर्चाओं में एक तर्क यह भी है कि तीन तलाक और महिला आरक्षण बिल जैसे मुद्दों से बीजेपी ने आधी आबादी को तो साध लिया है। लेकिन वह मैरिटल रेप पर पुरुषों के खिलाफ जाकर आधी आबादी का मोहभंग नहीं होने देना चाहती है।

Why centre told supreme court marital rape is not a legal but a social issue

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Published On: Oct 03, 2024 | 08:37 PM

Topics:  

  • Narendra Modi
  • Supreme Court

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