सिद्धरमैया (सोर्स:-सोशल मीडिया)
बेंगलुरु: कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया की मुश्किलें इन दिनों लगातार बढ़ती ही जा रही है, जहां अब कर्नटाक राज्यपाल ने थावरचंद गहलोत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि आवंटन घोटाले के संबंध में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।
मुकदमा को मंजूरी देने के साथ ही राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कहा कि मामले की एक तटस्थ, वस्तुनिष्ठ और गैर-पक्षपातपूर्ण जांच कराना बहुत आवश्यक है। वह प्रथम दृष्टया इस बात से संतुष्ट हैं कि आरोप और मामले से जुड़ी संबंधित सामग्री अपराध किए जाने का खुलासा करती हैं।
कई महीनों से कर्नाटक के सीएम पर लगे भ्रष्टचार के मामलों को लेकर सिद्धरमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रहा है, जिसके बाद अब राज्यपाल का ये निर्णय सीएम के लिए घातक हो सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि राज्यपाल ने मंजूरी देते हुए मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए उस निर्णय को अतार्किक करार दिया जिसमें मुख्यमंत्री को जारी कारण बताओ नोटिस वापस लेने तथा मुकदमा चलाने की मंजूरी की मांग करने वाली याचिका को खारिज करने की सलाह दी गई थी।
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राज्यपाल ने अपने निर्णय में कहा याचिका के साथ आरोपों के समर्थन में सामग्री, सिद्धरमैया के उत्तर, राज्य मंत्रिमंडल की सलाह और कानूनी राय की समीक्षा करने पर मुझे लगता है कि एक ही तथ्य के संदर्भ में दो अलग-अलग पक्ष हैं। उन्होंने कहा यह बहुत जरूरी है कि निष्पक्ष वस्तुनिष्ठ और गैर-पक्षपाती जांच की जाए। मैं प्रथम दृष्टया संतुष्ट हूं कि आरोप और सहायक सामग्री अपराध किए जाने का खुलासा करती हैं।
राज्यपाल ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों के लिए में अभियोजन की मंजूरी देता हूं।
इसके साथ ही अधिवक्ता- सामाजिक कार्यकर्ता टी जे अब्राहम द्वारा दायर याचिका के आधार पर राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 26 जुलाई को एक ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया था, जिसमें मुख्यमंत्री को निर्देश दिया गया था कि वह सात दिनों के भीतर उनके खिलाफ आरोपों पर जवाब प्रस्तुत करें कि उनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति क्यों न दी जाए।
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मिली जानकारी के अनुसार कर्नाटक सरकार ने एक अगस्त को राज्यपाल को मुख्यमंत्री को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस’ को वापस लेने की सलाह दी थी और राज्यपाल पर संवैधानिक कार्यालय के घोर दुरुपयोग का आरोप लगाया था। साथ ही याचिकाकर्ता अब्राहम के अनुरोध के अनुसार पूर्व अनुमोदन और मंजूरी से इनकार करते हुए उक्त आवेदन को खारिज करने की भी सलाह दी थी।