उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने के बाद का मंजर, फोटो- सोशल मीडिया
Uttarakhand Dharali Cloudburst: पिछले एक दशक में धराली क्षेत्र तीन बार प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ चुका है। हर बार तबाही के बाद स्थानीय लोगों ने वहीं नए मकान खड़े कर लिए, लेकिन 5 अगस्त की घटना ने गांव को पूरी तरह मलबे में बदल दिया। आपदा के सात दिन बाद भी यहां लाखों टन मलबा जमा है और राहत कार्य में कठिनाइयां आ रही हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उत्तराखंड प्रशासन ने साफ किया है कि गांव को सुरक्षित इलाके में स्थानांतरित किया जाएगा ताकि भविष्य में जान-माल का नुकसान रोका जा सके। बैठक में यह भी तय हुआ कि नदियों के किनारे और भूस्खलन प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का नया निर्माण प्रतिबंधित रहेगा। सरकार ने संकेत दिए हैं कि धराली जैसे अन्य संवेदनशील गांव भी आवश्यकता पड़ने पर स्थानांतरित किए जा सकते हैं।
5 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 45 मिनट पर धराली में बादल फटने के बाद खीर गंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई। महज 34 सेकेंड में पूरा गांव जलमग्न हो गया। सरकार ने जानकारी दी कि अब तक 43 लोग लापता हैं, जिनमें से केवल एक शव बरामद हुआ है।
अपर सचिव बंशीधर तिवारी ने बताया कि गांव के विस्थापन को लेकर स्थानीय लोगों से चर्चा जारी है। लोग चाहते हैं कि उन्हें 8 से 12 किलोमीटर दूर लंका, कोपांग या जांगला क्षेत्र में बसाया जाए। प्रशासन जल्द ही उपयुक्त स्थान का चयन करेगा। आपदा में धराली के पास स्थित हर्षिल में सेना का कैंप भी बाढ़ की चपेट में आकर बह गया था। अब सेना श्रीखंड पर्वत और आसपास के ग्लेशियर व झीलों का निरीक्षण कर नए कैंप के लिए सुरक्षित स्थान तय करेगी।
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आपदा के पहले दिन सरकार ने 4 मौतें और 30 लापता लोगों की पुष्टि की थी। 10 अगस्त को यह संख्या घटाकर 15 कर दी गई, लेकिन स्थानीय लोग शुरू से ही करीब 60 लोगों के लापता होने का दावा करते रहे हैं। मौसम खराब होने और सड़क मार्ग बाधित रहने के कारण खोजबीन का काम समय पर शुरू नहीं हो सका। लापता लोगों में 29 नेपाली मजदूर भी शामिल थे। मोबाइल नेटवर्क बहाल होने के बाद इनमें से 5 से संपर्क हो सका है, जबकि 24 मजदूरों की तलाश अब भी जारी है।