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‘एक्टिविज्म टेररिज्म न बने…’, CJI गवई की सुप्रीम कोर्ट में चेतावनी, क्या बोले मोदी सरकार के वकील?

President Reference News: सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति रेफरेंस सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा कि न्यायिक एक्टिविज्म कभी टेररिज्म न बने। SG मेहता बोले, जनता द्वारा चुने नेताओं की भूमिका कमजोर न करें।

  • By अर्पित शुक्ला
Updated On: Aug 21, 2025 | 07:05 PM

सुप्रीम कोर्ट (Image- Social Media)

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Supreme Court News : सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान उस वक्त माहौल गर्म हो गया जब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सख्त टिप्पणी की। CJI गवई ने साफ शब्दों में कहा कि “न्यायिक सक्रियता कभी भी न्यायिक आतंकवाद या न्यायिक दुस्साहस में नहीं बदलनी चाहिए।” ये चेतावनी ऐसे समय आई जब कोर्ट इस बात पर सुनवाई कर रहा था कि क्या न्यायपालिका राज्यपाल और राष्ट्रपति पर विधानसभा से पारित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय कर सकती है।

इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि जनता द्वारा चुने गए नेताओं के अनुभव और फैसलों को कम आंकना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। तुषार मेहता ने कहा कि आज के वक्त में लोग सीधे अपने नेताओं से सवाल करते हैं, ऐसे में चुने हुए प्रतिनिधियों की भूमिका को कमजोर करना उचित नहीं होगा।

क्या है मामला?

ये सुनवाई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए संवैधानिक रेफरेंस को लेकर हो रही थी। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी कि क्या अदालत राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर फैसला लेने की एक निश्चित समय-सीमा तय कर सकती है। सीजेआई गवई के अलावा, पांच सदस्यीय संविधान पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा और ए.एस. चंदुरकर शामिल थे।

एसजी मेहता की दलील

सॉलिसिटर जनरल मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्यपाल द्वारा “मंजूरी रोकना” संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत एक स्वतंत्र और पूर्ण अधिकार है। इसे सीमित करना या इस पर समय-सीमा तय करना संविधान के संतुलन को बिगाड़ देगा। उन्होंने ये भी कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल का अनुभव इस बहस में अहम होगा, क्योंकि वह न सिर्फ़ लंबे समय से संसद में हैं, बल्कि शासन का भी हिस्सा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या कहा था?

सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने याद दिलाया कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को दोबारा राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते। इसी साल अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए।

यह भी पढ़ें- SC, ST समुदायों को छोड़कर 18+ लोगों के नए आधार कार्ड नहीं बनेंगे, घुसपैठ पर सरकार सख्त

राष्ट्रपति ने राय क्यों मांगी?

मई में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवाल भेजे थे। इनमें यह भी शामिल था कि क्या न्यायपालिका राष्ट्रपति और राज्यपाल को एक निश्चित समय सीमा में फैसला लेने के लिए बाध्य कर सकती है और अनुच्छेद 200 व 201 के तहत उनकी शक्तियों की सीमा क्या है। केंद्र सरकार ने अपने लिखित जवाब में कहा है कि अगर अदालत राज्यपाल और राष्ट्रपति पर एक निश्चित समय सीमा थोपती है, तो इससे “संवैधानिक अव्यवस्था” पैदा होगी।

Supreme court cji gavai warning judicial activism terrorism president reference

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Published On: Aug 21, 2025 | 07:05 PM

Topics:  

  • Central Government
  • Latest News
  • Supreme Court

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