साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (फोटो- सोशल मीडिया)
Sadhvi Pragya Thakur: 2008 में हुए मालेगांव ब्लास्ट में एनआईए कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित अन्य सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है। इस केस के चलते साध्वी प्रज्ञा लंबे समय तक जेल में रहीं और खुद पर वर्षों तक आतंकवाद का कलंक भी झेलना पड़ा। संघर्ष के इन दिनों में वह कैंसर से भी पीड़ित हुईं और इस लाइलाज मानी जाने वाली बीमारी पर उन्होंने जीत हासिल की। भोपाल से लोकसभा सांसद रहीं 55 वर्षीय प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बचपन मध्य प्रदेश के भिंड की गलियों में बीता।
छोटे बालों वाली, जींस और टी-शर्ट पहने एक लड़की, अपनी बहन के साथ बाइक पर सवार होकर भिंड की गलियों में मनचलों को सबक सिखाने निकल पड़ती थी, जो बाद में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम से पूरे देश में मशहूर हो गईं। प्रज्ञा ठाकुर छोटी उम्र से ही हिंदुत्व के विचारों के प्रचार-प्रसार में समर्पित रही है क्योंकि उनके पिता जी भी हिंदू विचारधार वाले एक संस्थान के साथ जुड़े रहे हैं। बता दें प्रज्ञा ठाकुर शुरूआत में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य बनीं और बाद में विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी में भी शामिल हुईं।
2 फरवरी 1970 को जन्मी प्रज्ञा के पिता चंद्रपाल सिंह भिंड शहर के एक प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 1996 में एमजेएस कॉलेज से एमए किया। इसके बाद उन्होंने भोपाल के विद्यानिकेतन कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन से बीपीएड की डिग्री भी ली।
2002 में उन्होंने ‘जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति’ का भी गठन किया। उनके पिता ने एक बार एक समाचार पत्रिका को दिए साक्षात्कार में बताया था कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर इस संगठन के माध्यम से उन लड़कियों की बरामदगी का काम करती थीं जिन्हें दूसरे समुदाय के लड़के भगा ले जाते थे।
स्वामी अवधेशानंद गिरि से प्रभावित होकर प्रज्ञा ठाकुर साध्वी बनीं। बाद में उन्होंने इंदौर में राष्ट्रीय जागरण मंच की स्थापना की। इसके कार्यों के सिलसिले में वह देश के विभिन्न हिस्सों में जाती रहती थीं। इसी दौरान, 2008 में महाराष्ट्र एटीएस द्वारा उन्हें गिरफ्तार किए जाने पर उनका नाम अचानक पूरे देश में गूंज उठा। मालेगांव विस्फोट में दावा किया गया था कि आतंकवादी घटना में शामिल बाइक साध्वी प्रज्ञा सिंह के नाम पर पंजीकृत थी।
मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास 29 सितंबर 2008 को एक मोटर साइकिल में लगे विस्फोटक के फटने की वजह से 6 लोगों की मौत हो गई और लगभग सैकड़ों लोग इसमें घायल हुए थे। लेकिन अब अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी, जैसा कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया था। उन्होंने कहा कि यह भी साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट कथित तौर पर मोटरसाइकिल पर लगाए गए बम से हुआ था। इस बीच, वह 17 साल तक आतंकवाद का कलंक झेलती रहीं।
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मालेगांव विस्फोट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट से 24 अप्रैल 2017 को जमानत मिली थी। फिर वे 17 अप्रैल 2019 को औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हुईं। पार्टी ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल शीट से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को इस शीट से बडे भारी अंतरो के साथ हराया और जिसके बाद वे पहली बार लोकसभा पहुचीं। जिसके बाद लोकसभा सदस्य रहते हुए उनके कई ऐसे बयान सामने आएं जहां पार्टी और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनसे खासा नाराज रहा। हालांकि, पार्टी ने उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया।
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साध्वी प्रज्ञा सिंह अपने विवादास्पद बयानों के कारण कई बार चर्चा में रही हैं। लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था। इस वजह से भाजपा की काफी आलोचना हुई थी और भाजपा नेतृत्व नाराज हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि प्रज्ञा ने अपने बयान के लिए माफी मांग ली है, लेकिन वे स्वंय उन्हें दिल से कभी माफ नहीं कर पाएंगे।