कॉन्सेप्ट फोटो (डिजाइन)
Rahul vs Priyanka Gandhi: संसद का शीतकालीन सत्र अब तक काफी घटनापूर्ण रहा है। कई राजनीतिक घटनाक्रमों ने कांग्रेस पार्टी के अंदर सत्ता संतुलन के बारे में नए सवाल खड़े किए हैं। ‘वंदे मातरम’ पर बहस और चुनावी सुधारों के मुद्दे ने पार्टी के नेतृत्व की भूमिकाओं को साफ तौर पर उजागर किया है।
‘वंदे मातरम’ पर बहस के दौरान राहुल गांधी संसद गायब रहे। जिसके बाद सत्ता से सवाल पूछने की ज़िम्मेदारी उनकी बहन और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी ने निभाई। दिलचस्प बात यह है कि प्रियंका गांधी ने उसी दिन भाषण दिया जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद को संबोधित किया था।
संसदीय परंपरा के अनुसार, यह टकराव पीएम और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के बीच होना चाहिए था। लेकिन राहुल की गैरमौजूदगी और प्रियंका की जोशीली मौजूदगी ने तस्वीर बदल दी। प्रियंका ने मुस्कुराते हुए और हल्के व्यंग्य के साथ भाषण दिया। कुछ बीजेपी सदस्यों ने तो उनके अंदाज की तारीफ भी की।
पीएम के भाषण के दौरान वह सदन में नहीं थीं, लेकिन उनके जवाब से साफ था कि वह पूरी तैयारी के साथ आई थीं। इस भाषण को कांग्रेस और INDIA गठबंधन के कई नेताओं ने उम्मीद की किरण के तौर पर देखा। हालांकि, पार्टी के अंदर इस बात को लेकर भी कन्फ्यूजन है कि क्या प्रियंका नेतृत्व की भूमिका निभाने को तैयार हैं या उन्हें रोका जा रहा है।
लोकसभा में प्रियंका गांधी (सोर्स- सोशल मीडिया)
अगले दिन राहुल गांधी को चुनावी सुधारों के मुद्दे पर बोलना था। टकराव की उम्मीद थी, लेकिन न तो प्रधानमंत्री मौजूद थे और न ही राहुल ने वह आक्रामक ऊर्जा दिखाई। जैसी उन्होंने “वोट चोरी” प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाई थी। राहुल अपने भाषण से कुछ देर पहले सदन में आए और भाषण खत्म होते ही चले गए। इस रवैये से कांग्रेस सांसदों को निराशा हुई।
प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी के भाषण का जवाब नहीं दिया। इसके बजाय गृह मंत्री अमित शाह ने बहुत ही तीखे, पॉइंट-टू-पॉइंट और प्रभावी तरीके से जवाब दिया। इससे संकेत मिला कि पीएम ने यह टकराव अपने नंबर दो पर छोड़ दिया था। इन दो दिनों की घटनाओं ने कांग्रेस के अंदर सत्ता संतुलन के बारे में कई संकेत दिए हैं।
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प्रियंका ने अपने भाषण से संकेत दिया कि वह पार्टी के लिए एक संभावित राष्ट्रीय चेहरा हो सकती हैं। दूसरी ओर राहुल का रवैया थोड़ा कम तीखा दिखा। अमित शाह ने तीखे राजनीतिक तर्कों से उन्हें घेर लिया। जहां प्रियंका की स्पीच से कांग्रेस पार्टी में जोश आया है, वहीं इस बात की भी चिंता है कि क्या वह आगे बढ़कर लीडरशिप की भूमिका निभाएंगी।
राहुल की अनियमित मौजूदगी और उनकी स्पीच में एनर्जी की कमी ने पार्टी के अंदर सवाल खड़े किए हैं। सिर्फि 48 घंटों में कांग्रेस पार्टी का लीडरशिप का नजारा पूरी तरह बदल गया है। अब प्रधानमंत्री सीधे प्रियंका के साथ मुकाबले में दिख रहे हैं, जबकि राहुल अमित शाह के सामने हैं।
कई कांग्रेस नेताओं का मानना है कि पार्टी के अंदर असली चुनौती अब दोनों गांधी भाई-बहनों की भूमिकाओं को साफ करना है। इसके साथ ही सियासी पंडित भी प्रियंका की लीडरशिप को राहुल से मजबूत मान रहे हैं। अब अगर कांग्रेस पार्टी ऐसा कोई फैसला करती है तो आने वाले सियासी युद्धों में बदली हुई तस्वीर नजर आ सकती है।