परमवीर धनसिंह थापा
नवभारत डेस्क: 1948 की भारत और पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई में जो भारत ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ाएं थे उसके बाद पाकिस्तान चुप हो गया, लेकिन फिर भारत के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में चीन सामने आ गया। साल था 1962 भारत-चीन सीमा पर ड्रैगन भारतीय जमीन निगलने की तैयारी में था या यू कहे निगलने लगा था। जिसका परिणाम युद्ध के रूप में सामने आया। उस युद्ध में भारत के ओर से कई वीर सैनिकों ने अपना बलिदान देते हुए भारत मां के ऊपर आंच नहीं आने दिया।
आज हम याद करो कुर्बानी में बात एक ऐसे ही एक मां भारती के वीर सपूत मेजर धन सिंह थापा की करेंगे जिन्होने 1962 की जंग में 27 जवानों की एक टुकड़ी के साथ 600 चीनियों के छक्के छुड़ा दिए थे। इनकी वीरता को देखते हुए बहादुर मेजर धन सिंह थापा को परमवीर चक्र मिला था।
चलिए अब आपको 1962 के उस युद्ध के समय में ले चलते है जहां मेजर धनसिंह थापा ने अकेले ही चीन के सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। साल था 1962 भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ चुका था, 19-20 अक्टूबर की दरम्यानी रात चीनी सैनिकों ने गलवान की सिरिजाप चौकी पर हमला किया, इस चौकी की जिम्मेदारी मेजर धनसिंह थापा की अगुवाई में गोरखा रेजिमेंट संभाल रहा थी। थापा की टुकड़ी में 27 जवान शामिल थे और चीन की टुकड़ी में 600 से ज्यादा सैनिक थे चीनी सैनिकों ने मोर्टार और आर्टिलरी से हमला किया इस बीच भारतीय सैनिकों ने बंकर को और भी गहरा किया और लाइट मशीन गन से जवाबी हमला बोल दिया।
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इसी भीषण गोलीबारी में कई रेडियो सेट्स खराब हो गए, जिसके कारण धनसिंह थापा की टुकड़ी का संपर्क टूट गया। लेकिन थापा और उनके सेकंड इन कमांड सूबेदार मिन बाहुदर गुरुंग का हौसला बरकरार रहा और फिर दोनों एक पोस्ट से दूसरे पोस्ट की तरफ भागते हुए मशीन गन से फायरिंग करते रहे, चीनी फौज जब पोस्ट के एकदम से करीब आ गई तो उन लोगों ने बम फेंकना शुरू किया। भारतीय सैनिक भी जवाब दे रहे थे।
आज जानकर हैरान हो जाएंगे कि 27 सैनिकों के टुकड़ी में 20 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गवां दी। जिसके बाद थापा के साथ अब सिर्फ 7 जवान बचे थे, तभी चीनी फौजियों ने एक बार फिर हैवी मशीन गन और रॉकेट लॉन्चर से हमला कर दिया। धन सिंह थापा ने मोर्चा लिया लेकिन उनके चार और साथी शहीद हो चुके थे। धनसिंह थापा ने बचे तीन साथियों के साथ लड़ाई जारी रखी। थापा ने खुखरी से कई चीनी सैनिकों को मार डाला। लेकिन कुछ ही देर में धनसिंह थापा समेत 4 भारतीय सैनिकों को चीन ने बंदी बना लिया।
आपको बता दें कि जब चौकी पर चीनी कब्जे का समाचार सेना मुख्यालय पहुंचा तो सबने मान लिया कि मेजर धनसिंह थापा भी शहीद हो गए हैं। 28 अक्टूबर को उनके परिवार को चिट्ठी लिखकर उनके शहीद होने की सूचना भी दे दी गई थी। परिवार ने अंतिम संस्कार की औपचारिकताएं भी पूरी कर ली।
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लेकिन जब युद्ध समाप्त हुआ और चीनी सरकार ने युद्ध बंदियों की लिस्ट सौंपी तो उसमें मेजर धनसिंह थापा का नाम भी था। इसके बाद उनको रिहा कर दिया गया। जानकारी के लिए बता दें कि 10 मई 1963 को धनसिंह थापा का भारत लौटने पर भव्य स्वागत किया गया।
चलिए अब आपको बताते है कि धनसिंह थापा का प्ररांभिक जीवन कैसा था। जानकारी के लिए बता दें कि जन्म 10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था। उनके पिता श्री पदम सिंह थापा मगर थे। श्री थापा को 8 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में 28 अगस्त 1949 को शामिल किया गया था।