नरेंद्र मोदी(सोर्स:- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सदन में इस बार मानसून सत्र की शुरूआत जोरदार गर्माहट के साथ हुई, जहां बजट 2024 को लेकर बातें थम नहीं रही थी कि केंद्र सरकार ने एक बार फिर महौल गर्म करने के लिए संसद में वप्फ बोर्ट में संसोधन करने के लिए में बिल पेश करने का मन बना लिया। सुत्रों की माने तो आज मानसून सत्र के 11वें दिन मोदी सरकार संसद में वक्फ बोर्ड की ताकतों पर शिकंजा कसने के लिए एक संसोधन बिल पेश करने वाली है।
वक्फ बोर्ड पर शिकंजा कसने वाले बिल की खबर सामने आती है देश की सियासत में जबरदस्त गर्माहट देखने को मिल रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार के द्वारा पेश किए जाने वाले संसोधन बिल के बाद वक्फ बोर्ड के किसी भी जमीन को अपना बनाने की शक्तियों पर अब अंकुश लगने वाला है।
प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट के द्वारा वक्फ बोर्ड की ताकतों पर शिकंजा कसने वाले बिल पर विपक्ष के द्वारा जोरदार हंगामे के आसार दिख रहे, जाहिर सी बात है कि इस बिल को पास करना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं होने वाला है। क्योंकि इस बार विपक्ष मजबूती के साथ केंद्र सरकार को सदन में घेरने के लिए तैयार बैठा है, जिसके बाद अब देखने वाली बात ये होगी कि विपक्ष की इतनी मजबूती के बाद मोदी सरकार कैसे इस बिल को पास करने में कामयाब होती है।
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चलिए अब आपको बताते है कि आखिर वक्फ बोर्ड कानून के क्या नियम है, सर्वप्रथम नेहरू सरकार के दौरान 1954 में वक्फ अधिनियम पारित किया गया था, जिसके बाद इसे केंद्रीकृत कर दिया गया। इस संपत्ति के रखरखाव की जिम्मेदारी वक्फ अधिनियम 1954 के पास थी। तब से लेकर अब तक इसमें कई बार संशोधन हो चुके हैं। लेकिन इस बार मोदी सरकार के इस बिल के कयास मात्र से ही विपक्ष और मुसलमान पक्ष केंद्र सरकार का विरोध करने लगे है। जिसके बाद अब देखने वाली बात है कि आखिर मोदी सरकार अपने फैसले पर अडिग रहती है या फिर कोई और निर्णय लेने वाली है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वक्फ बोर्ट के नियम को लेकर विवाद कोई पहली बार नहीं हो रही है, इसकी शुरुआत की बात करें तो यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार दे दिए, जहां वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी भी ट्रस्ट आदि से ऊपर है। वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के बारे में जांच करने का अधिकार दिया गया है, चाहे वह वक्फ संपत्ति हो या न हो। अगर बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा करता है तो इसके विपरीत साबित करना बहुत मुश्किल हो सकता है। वक्फ अधिनियम की धारा 85 में कहा गया है कि उसके फैसले को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती नहीं दी जा सकती।
वहीं बात अगर वक्फ बोर्ड में शामिल अधिकारी की बात करें तो बोर्ड में एक सर्वे कमिश्नर होता है, जो संपत्तियों का लेखा-जोखा रखता है। इसके अलावा मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आईएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता और मुस्लिम बुद्धिजीवी जैसे लोग इसमें शामिल हैं। वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। ट्रिब्यूनल में किसे शामिल किया जाएगा, यह राज्य सरकार तय करती है। अक्सर राज्य सरकारें कोशिश करती हैं कि वक्फ बोर्ड में ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम शामिल हों।
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वक्फ के पास बहुत सारी संपत्ति होती है, जिसका रखरखाव सही तरीके से किया जा सके और दान-पुण्य के लिए इस्तेमाल किया जा सके। यह सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय और बड़े स्तर पर कई निकाय हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड कहा जाता है। लगभग हर राज्य में सुन्नी और शिया वक्फ हैं। इनका काम उस संपत्ति की देखभाल करना और उससे होने वाली आय का सही तरीके से इस्तेमाल करना है। इस संपत्ति में गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान का रखरखाव करना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए पैसे देना शामिल है।
केंद्र सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने के लिए विधेयक पेश किए जाने के संबंध में खबरों के बीच एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को आरोप लगाया कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शुरू से ही वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है और उसने अपने हिंदुत्व एजेंडे के तहत वक्फ संपत्तियों तथा वक्फ बोर्ड को खत्म करने का प्रयास शुरू किया है।
इसके साथ ही ओवैसी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि प्रस्तावित संशोधनों के बारे में मीडिया में खबरें आ रही हैं, जिनसे पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है। वह वक्फ संपत्ति के संचालन में हस्तक्षेप करना चाहती है। यह अपने आप में धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। हैदराबाद के सांसद ने कहा कि यदि वक्फ बोर्ड की स्थापना और संरचना में कोई संशोधन किया जाता है, तो ‘‘प्रशासनिक अराजकता” पैदा होगी और वक्फ बोर्ड अपनी स्वायत्तता खो देगा।