नरेन्द्र मोदी, अमित शाह व मोहन भागवत
New BJP President: भारतीय जनता पार्टी अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में है, क्योंकि वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2024 में समाप्त हो रहा है। मीडिया में कई नामों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। लेकिन अभी तक नाम फाइनल नहीं हुआ है। वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी पाँच देशों की यात्रा से लौट आए हैं, इसलिए माना जा रहा है कि नए भाजपा अध्यक्ष पर जल्द ही मुहर लग सकती है।
इस मौके पर आइए जानते हैं कि क्या भाजपा अध्यक्ष पद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोई विचारधारा भी काम करेगी? क्या नए अध्यक्ष की नियुक्ति में संघ का ही पूर्ण योगदान होगा? क्या वाकई नया बीजेपी अध्यक्ष पीएम मोदी और अमित शाह से ज्यादा ताकतवर होगा? आइए समझते हैं सारी बातें…
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के अगले अध्यक्ष पद के लिए नामों की चर्चा के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की ओर से नागपुर से एक स्पष्ट संदेश आया है कि भाजपा का अगला अध्यक्ष सिर्फ़ एक रणनीतिकार नहीं, बल्कि वैचारिक रूप से मज़बूत और संगठन से गहराई से जुड़ा हुआ होना चाहिए।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आरएसएस चाहता है कि अगला भाजपा अध्यक्ष युवा और ज़मीनी स्तर का हो। वह शाखाओं, प्रचारकों और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ा हो। उसकी वैचारिक स्पष्टता हो। समान नागरिक संहिता (UCC), जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर उसकी स्पष्ट सोच हो।
आरएसएस की चिंता यह है कि जीत की चाह में भाजपा कई ऐसे लोगों को भी पार्टी में ले रही है, जिनका विरोध हो रहा है। पार्टी में बाहरी नेताओं (जो दूसरे दलों से आए हैं) और टेक्नोक्रेट्स का प्रभाव बढ़ रहा है, जो आरएसएस को पसंद नहीं है। वह चाहता है कि नया अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति हो जो वैचारिक रूप से पार्टी की मूल विचारधारा को मज़बूत करे।
आरएसएस और भाजपा का रिश्ता आपसी सहमति और संतुलन पर आधारित है। मोदी की लोकप्रियता और शाह की रणनीति ने पिछले एक दशक में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता दिलाई है। लेकिन 2024 के चुनाव नतीजों ने दिखा दिया कि अब सिर्फ़ मोदी की छवि ही जीत के लिए काफ़ी नहीं है। आरएसएस का मानना है कि पार्टी को वैचारिक दृढ़ता और संगठनात्मक मजबूती पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
2024 के बाद, भाजपा की कई राज्य इकाइयों में असंतोष बढ़ गया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में आंतरिक मतभेद उभरकर सामने आए हैं। आरएसएस चाहता है कि नया अध्यक्ष इन मतभेदों को दूर करे और पार्टी को एकजुट रखे। साथ ही, वह संस्कृत शिक्षा और आयुर्वेद जैसे सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों को बढ़ावा दे।
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आरएसएस भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक मार्गदर्शक है। यह अध्यक्ष के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन खुलकर हस्तक्षेप नहीं करता। इसके बजाय, यह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से परामर्श करता है। आरएसएस चाहता है कि नया अध्यक्ष संगठन को स्वायत्तता दे और कार्यकर्ताओं की आवाज़ सुने।
मोदी और शाह अभी भी भाजपा के सबसे बड़े चेहरे हैं। लेकिन आरएसएस का मानना है कि पार्टी को अब दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार करना होगा, खासकर इसलिए क्योंकि मोदी सितंबर 2025 में 75 वर्ष के हो जाएँगे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा था कि 75 वर्ष की आयु के बाद नए लोगों को सार्वजनिक जीवन में मौका दिया जाना चाहिए। देश में इसे लेकर कई अटकलें लगाई गईं।
संभावित उम्मीदवारों में कुछ नामों पर चर्चा हो रही है, जिनमें नितिन गडकरी, भूपेंद्र यादव, मनोहर लाल खट्टर, शिवराज सिंह चौहान और निर्मला सीतारमण शामिल हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यह आरएसएस की ओर से भी एक संकेत है कि वह पहली बार किसी महिला को अध्यक्ष बनाए जाने का समर्थन कर सकता है, जैसे निर्मला सीतारमण, डी. पुरंदेश्वरी या वनाथी श्रीनिवासन।