PM मोदी को 24 साल पहले वाजपेयी ने पुतिन से मिलवाया था (फोटो- सोशल मीडिया)
PM Modi Meeting With President Putin: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ चुकें हैं उनका विमान शाम 7 बजे के करीब दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर पहुंचा और इसी सिलसिले में सियासी गलियारों में हलचल तेज बनी हुई है। एक तरफ लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी इस बात से नाराज हैं और आरोप लगा रहे हैं कि सरकार उन्हें विदेशी मेहमानों से मिलने नहीं दे रही, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन की दोस्ती की एक ऐसी कहानी चर्चा में है जो पूरे 24 साल पुरानी है। यह किस्सा उस दौर का है जब अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद कूटनीतिक प्रोटोकॉल से परे जाकर एक युवा मुख्यमंत्री को वैश्विक मंच पर पुतिन से मिलवाया था। आज जब दोनों नेता मिलें, तो दुनिया की नजरें उस केमिस्ट्री पर गढ़ी हुईं है जिसकी नींव 2001 में मॉस्को की सर्द फिजाओं में रखी गई थी।
यह तारीख थी 6 नवंबर 2001 गुजरात के मुख्यमंत्री बने नरेंद्र मोदी को अभी एक महीना ही हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी दूरदर्शिता दिखाते हुए उन्हें अपने प्रतिनिधिमंडल में मॉस्को ले गए थे। कूटनीति में प्रोटोकॉल बहुत सख्त होते हैं और मुख्यमंत्रियों की भूमिका सीमित होती है, लेकिन उस पहली मुलाकात में ही पुतिन ने सारी दीवारें गिरा दी थीं। उन्होंने मोदी से एक छोटे राज्य के मुख्यमंत्री की तरह नहीं, बल्कि एक पुराने दोस्त और समान कद के नेता की तरह बात की थी। मोदी ने खुद कई बार जिक्र किया है कि पुतिन ने उन्हें कभी छोटा महसूस नहीं होने दिया, और यही वो ‘फर्स्ट इंप्रेशन’ था जिसने इस अटूट भरोसे की आधारशिला रखी।
इंटरनेट पर आज भी वो तस्वीर वायरल है जिसमें अटल जी बेहद संतोषजनक मुस्कान के साथ बैठे हैं और उनके सामने मोदी आस्ट्राखान समझौते पर दस्तखत कर रहे हैं। यह गुजरात और रूस के आस्ट्राखान प्रांत के बीच तेल और गैस सहयोग का समझौता था, जिसे ‘नार्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ की नींव माना गया। मोदी ने तभी भांप लिया था कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस और कैस्पियन क्षेत्र कितना जरूरी है। इसके बाद जब 2002 के बाद पश्चिमी देशों ने मोदी से दूरी बनाई और वीजा देने में आनाकानी की, तब भी पुतिन उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। राजनीति में बुरे वक्त का साथ सबसे गहरा होता है और यही कारण है कि दोनों नेताओं के बीच एक ‘साइलेंट एरा’ में भी भरोसा कायम रहा, जो 2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद और प्रगाढ़ हो गया।
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साल 2018 में सोची समिट में बिना किसी एजेंडे के दोनों नेताओं ने नाव की सवारी करते हुए घंटों बात की थी, जो उनकी सहजता को दर्शाता है। जब अमेरिका ने एस-400 मिसाइल सिस्टम पर प्रतिबंध की धमकी दी, तो मोदी ने साफ कर दिया कि रूस से रिश्ते स्वतंत्र हैं। दोस्ती का सबसे बड़ा इम्तिहान यूक्रेन युद्ध के दौरान हुआ। पश्चिमी दबाव के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा। मोदी ने पुतिन की आंखों में आंखें डालकर कहा कि यह युद्ध का युग नहीं है, जो सिर्फ एक सच्चा दोस्त ही कह सकता है। एक तरफ यह ऐतिहासिक याराना है, तो दूसरी तरफ राहुल गांधी का कहना है कि वाजपेयी और मनमोहन सिंह के दौर में विपक्ष को विदेशी मेहमानों से मिलने की आजादी थी, लेकिन अब सरकार और विदेश मंत्रालय उन्हें पुतिन जैसे नेताओं से दूर रख रहे हैं, जो पुरानी परंपराओं के खिलाफ है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल ने पुतिन से मिलने की इच्छा जाहिर की थी।