
लालू प्रसाद यादव और एचडी देवेगौड़ा के साथ इंद्र कुमार गुजराल (सोर्स- सोशल मीडिया)
Indra Kumar Gujral Birthday: साल था 1996 और देश अस्थिरता के एक भयानक दौर से गुज़र रहा था। उस वक्त सरकार का गिरना कोई मामूली घटना नहीं, बल्कि एक साज़िश मानी जाती थी। सरकार को सत्ता से हटाने का एक खुला खेल चल रहा था। कांग्रेस उस खेल के पीछे मास्टरमाइंड थी। जिसका पहला शिकार एचडी देवेगौड़ा बने और दूसरा शिकार एक ऐसा नेता हुआ जो पैदा तो पाकिस्तान में हुआ था लेकिन वह भारतीय प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच चुका था।
जी हां! आज उसी दिग्गज राजनेता और पूर्व पीएम इंद्र कुमार गुजराल की जयंती है। जिनका जन्म साल 1919 में आज ही के दिन यानी 4 दिसंबर को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ था। बाद में उनका पूरा परिवार भारत आ गया। उनके माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने पंजाब के संग्राम में अहम भूमिका निभाई। तो चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी ये दिलचस्प कहानी…
1996 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आए। भाजपा 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। कांग्रेस ने अकेले 141 सीटें जीतीं। उस समय कांग्रेस ने सरकार बनाने का इरादा नहीं जाहिर किया उसके दूसरे प्लान थे। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी जद्दोजेहद के साथ दूसरी पार्टियों को साथ लेकर आए और वह सरकार बनाने में कामयाब रहे। हालांकि, पॉलिटिकल गेम ऐसा था कि यह सपोर्ट अटल बिहारी वाजपेयी को सिर्फ 13 दिनों के लिए प्राइम मिनिस्टर बना सका और फिर उनकी सरकार गिर गई।
देश एक बार फिर अस्थिरता के दौर में चला गया। हर कोई यह सवाल कर रहा था कि सरकार कौन बनाएगा और देश की कमान कौन संभालेगा। बहुत सोच-विचार हुआ और कांग्रेस के सपोर्ट से एचडी देवेगौड़ा को प्राइम मिनिस्टर बनाया गया। एक तरफ देश को नया प्राइम मिनिस्टर मिला, दूसरी तरफ सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी मिल गई। केसरी के अपॉइंटमेंट से एक और बड़ी पॉलिटिकल उथल-पुथल की उम्मीद थी।
324 दिन बीत चुके थे देवेगौड़ा प्रधानमंत्री के तौर पर सरकार चला रहे थे और कांग्रेस भी उन्हें अपना सपोर्ट दे रही थी। सबको लगा कि स्टेबिलिटी आ गई है और पावर का खेल खत्म हो गया है। लेकिन सब कुछ गलत साबित हुआ और सीताराम केसरी ने ऐलान किया कि कांग्रेस देवेगौड़ा सरकार से अपना सपोर्ट वापस ले रही है। यह वापसी ठीक उस समय हुई जब पार्लियामेंट में बजट पेश किया जा रहा था। कांग्रेस ने साफ-साफ कहा, “अपना लीडर बदलो वरना हम अपना सपोर्ट वापस ले लेंगे।”
इंद्र कुमार गुजराल (सोर्स- सोशल मीडिया)
अब हालात बहुत खराब थे। देश एक और अल्पावधि चुनाव नहीं चाहता था। लेकिन यह भी साफ नहीं था कि प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए। एक तरफ नए प्रधानमंत्री की तलाश चल रही थी और दूसरी तरफ इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि केसरी ने ऐसा तरीका क्यों अपनाया। क्योंकि पॉलिटिकल माहौल को देखते हुए कयास लगना तो बनता ही था।
देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री पद से हटने और केसरी के इस कदम के दो कारण सामने आए। पहली थ्योरी यह थी कि सीताराम केसरी को खबर मिली थी कि देवेगौड़ा की सरकार उन्हें झूठे केस में फंसा सकती है। इसके अलावा उन्हें लगा कि कांग्रेस को वापस सत्ता में लाने की पूरी ज़िम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है, इसलिए उन्होंने “साम-दाम-दंड” थ्योरी का इस्तेमाल करके सरकार गिरा दी।
उस समय इस कहानी का एक और एंगल भी पॉपुलर हुआ। कहा जाता था कि सीताराम केसरी खुद प्राइम मिनिस्टर बनने का सपना देखने लगे थे। कहा जाता है कि उस समय केसरी की ज़्यादा इज्जत नहीं थी क्योंकि वे पिछड़ी जाति के थे। कांग्रेस के अंदर भी सभी टॉप पोस्ट ऊंची जातियों के पास थे और केसरी को भेदभाव का एहसास होता था।
उन्हें लगता था कि अगर वे सत्ता में आ गए तो सब उनकी इज्जत करेंगे और उनका रुतबा बढ़ेगा। खैर केसरी तो बस यही सपना देख रहे थे; प्राइम मिनिस्टर बनना उस समय नामुमकिन लग रहा था। अगर उनके विरोधी उनका विरोध करते तो बात समझ में आती। उनके अपने कांग्रेसी नेता सीताराम केसरी को कभी प्राइम मिनिस्टर के तौर पर स्वीकार नहीं करने वाले थे।
प्रणब मुखर्जी, शरद पवार, अर्जन सिंह और जितेंद्र प्रसाद कुछ और बड़े कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा था। लेकिन केसरी की उम्मीदवारी कभी स्वीकार नहीं की। कांग्रेस को एहसास हुआ कि अकेले सत्ता हासिल करना मुश्किल होगा, इसलिए वह यूनाइटेड फ्रंट को सपोर्ट करने के लिए तैयार हो गई। इस समझौते ने पाकिस्तान में पैदा हुए इंद्र कुमार गुजराल को देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया।
इंद्र गुजराल ने अपना बचपन पढ़ाई में बिताया और वह एक होशियार स्टूडेंट थे, उन्होंने MA, B.Com और PhD जैसी कई डिग्रियां हासिल कीं। वह दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के ज़रिए पॉलिटिक्स में आए और लंबे समय तक इंदिरा गांधी के करीब रहे। 1980 में कांग्रेस से उनका नाता खत्म हो गया और फिर वह जनता दल में शामिल हो गए।
पूर्व पीएम इंद्र कुमार गुजराल (सोर्स- सोशल मीडिया)
अपनी फॉरेन पॉलिसी के लिए मशहूर इंद्र कुमार गुजराल अपनी डॉक्ट्रिन थ्योरी के लिए जाने जाते थे। उनका मानना था कि भारत की ग्लोबल पहचान के लिए अपने पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारना ज़रूरी है। 1996 में अस्थिरता के दौर में गुजराल ने फॉरेन मिनिस्टर के तौर पर काम किया। इससे पता चलता है कि गुजराल पॉलिटिक्स में एक्टिव थे। हालांकि, प्राइम मिनिस्टर बनना उनके प्लान में नहीं था, और न ही शायद उन्होंने खुद ऐसी कोई ख्वाहिश रखी थी।
उस समय यूनाइटेड फ्रंट के प्राइम मिनिस्टर कैंडिडेट लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और जी.के. मूपनार थे, लेकिन किसी ने गुजराल का ज़िक्र तक नहीं किया। मीटिंग्स होती रहीं, बहसें बढ़ती गईं, और धीरे-धीरे कई नेताओं की ख्वाहिशें सामने आने लगीं। मुलायम ने उत्तर प्रदेश से सबसे ज़्यादा सीटें जीती थीं और सरकार में डिफेंस मिनिस्टर भी थे, जिससे उनका प्राइम मिनिस्टर बनना आसान हो गया था। इस बीच लालू प्रसाद यादव ने भी बिहार की पॉलिटिक्स में पिछड़े वर्गों को रिप्रेजेंट करते हुए एक बड़े नाम के तौर पर अपनी पहचान बना ली थी और वह भी प्राइम मिनिस्टर बनना चाहते थे।
यह भी पढ़ें: जयंती विशेष: क्रांति के कर्णधार या ‘माफीवीर’? वीर सावरकर की वह कहानी…जो कर देगी दूध का दूध और पानी का पानी
लेकिन मजेदार बात यह थी कि मुलायम लालू को नहीं चाहते थे और लालू मुलायम को पसंद नहीं करते थे। इस पॉलिटिकल लड़ाई का नतीजा यह हुआ कि दोनों बाहर हो गए। लेकिन लालू तेज़ थे, उन्हें पता था कि अगर वह खुद पीएम नहीं बन पाए तो वह यह पोस्ट अपने किसी करीबी को ज़रूर सौंप देंगे। तभी इंद्र कुमार गुजराल का नाम सामने आया। मुलायम अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने गुजराल का विरोध किया था। बाकी किसी को उनसे कोई शिकायत नहीं थी। हैरानी की बात यह है कि गुजराल उन मीटिंग में मौजूद थे जहां पीएम पद पर चर्चा हो रही थी। फिर भी जब उनका नाम फाइनल हुआ तो वे एक कमरे में सो रहे थे।
गुजराल थक चुके थे; कई घंटों की मीटिंग के बाद भी कोई फैसला नहीं हुआ था, इसलिए वे मीटिंग से चले गए। लेकिन जैसे ही उनके नाम का ऐलान हुआ, एक टीडीपी के सांसद दौड़कर आए, उन्हें उठाया और नेताओं का फरमान सुनाया। इंद्र कुमार गुजराल को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन किस्मत ने उनका साथ सिर्फ 11 महीने दिया और फिर सत्ता का खेल हमेशा की तरह फिर से शुरू हो गया।






