राज्य सभा (Image- Social Media)
Justice Yashwant Verma Case: भ्रष्टाचार के एक संदिग्ध मामले में आरोपों का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को न्यायाधीश पद से हटाने के लिए विपक्ष ने राज्यसभा में महाभियोग का नोटिस दिया था, जिसे तत्कालीन सभापति जगदीप धनखड़ ने स्वीकार कर लिया था। साथ ही, इसे जांच के लिए महासचिव के पास भी भेज दिया था। अब इस मामले में जानकारी सामने आ रही है कि नोटिस में कई त्रुटियां पाई गई हैं, जिसके कारण इसे अस्वीकार कर दिया गया है।
वहीं, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष द्वारा एक संयुक्त प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा। क्योंकि खबरों के अनुसार, विपक्षी दलों का नोटिस राज्यसभा में स्वीकार नहीं किया गया है। धनखड़ को ये 21 जुलाई को प्राप्त हुआ था, उसी दिन जिस दिन सत्ता पक्ष और विपक्ष का संयुक्त प्रस्ताव नोटिस लोकसभा में पेश किया गया था। इसके रद्द होने के बाद साथ ही 63 विपक्षी दलों के राज्यसभा सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस को लेकर अटकलों का दौर भी समाप्त हो गया है।
वहीं, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने की कार्यवाही सबसे पहले लोकसभा में शुरू होगी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित कर सकते हैं।
आपको बता दें कि तत्कालीन अध्यक्ष ने नोटिस मिलने का जिक्र किया था। जिसके बाद उन्होंने उसी रात अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया। विपक्ष लगातार इस पर सवाल उठा रहा है। हालांकि, उन्होंने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने शुक्रवार को कहा कि न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार के मामले में सभी राजनीतिक दलों ने सर्वसम्मति से एकजुट होकर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है। उन्होंने कहा कि लोकसभा इस प्रस्ताव पर विचार करेगी, जिस पर सत्तारूढ़ गठबंधन (एनडीए) और विपक्ष के 152 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं।
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रिजिजू ने कहा कि सभी राजनीतिक दल इस बात पर सहमत हैं कि न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का फ़ैसला संयुक्त रूप से लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यवाही लोकसभा में शुरू की जाएगी और फिर न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के अनुसार राज्यसभा में प्रस्तुत की जाएगी।