बैलिस्टिक मिसाइल। इमेज-सोशल मीडिया
Ballistic Missiles: भारत ने बंगाल की खाड़ी में न्यूक्लियर पावर वाली सबमरीन आईएनएस अरिघाट से के-4 नाम की इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल का टेस्ट किया है। यह मिसाइल 3500 किलोमीटर दूर के टारगेट को निशाना बनाने के लिए डिजाइन की गई है। विशाखापत्तनम तट से दूर 6,000 टन की आईएनएस अरिघाट से किए गए इस मिसाइल टेस्ट पर रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक बयान नहीं आया है। इस सबमरीन को तीनों सेनाओं की स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड ऑपरेट करती है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह मिसाइल सॉलिड-फ्यूल वाली के-4 थी। जो 2 टन का न्यूक्लियर पेलोड ले जा सकती है। इस टेस्ट को भारत के न्यूक्लियर हथियारों के ट्रायड के समुद्री हिस्से को मजबूत करने के लिए जरूरी बताया जा रहा। एक पूरी एनालिसिस से यह तय होगा कि टेस्ट असल में सभी तय टेक्निकल पैरामीटर और मिशन के उद्देश्यों को पूरा कर पाया या उसमें कुछ कमियां आईं हैं। बता दें, बैलिस्टिक मिसाइलों और खासकर पनडुब्बियों से लॉन्च की जाने वाली मिसाइलों को पूरी तरह से ऑपरेशनल स्टेटस हासिल करने में कई टेस्ट लगते हैं।
दो स्टेज वाली के-4 मिसाइल का पिछले साल नवंबर में आईएनएस अरिघाट से पहली बार टेस्ट किया गया था। इससे पहले कई साल में सबमर्सिबल पोंटून के आकार के पानी के अंदर के प्लेटफॉर्म से कई ट्रायल्स किए गए। आईएनएस अरिघाट, जो देश की दूसरी न्यूक्लियर-पावर्ड सबमरीन है, जिसमें न्यूक्लियर टिप वाली बैलिस्टिक मिसाइलें हैं पिछले साल 29 अगस्त को कमीशन की गई थी।
मिसाइल का पहला वर्जन आईएनएस अरिहंत 2018 में पूरी तरह से ऑपरेशनल हो गया था। वह सिर्फ 750-किमी रेंज वाली के-15 मिसाइलें ले जा सकता है। भारत 2026 की पहली तिमाही में आईएनएस अरिदमन के रूप में अपनी तीसरी SSBN और 2027-28 में चौथी SSBN को कमीशन करेगा। यह सब दशकों पहले शुरू किए गए 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के सीक्रेट ATV (एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल) प्रोग्राम के तहत होगा। ये दोनों SSBN, पहली दो 6,000-टन वाली SSBN से थोड़ी बड़ी हैं, जिनका डिस्प्लेसमेंट 7,000 टन है।
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13,500-टन के SSBN बनाने की भी योजना है। उसमें पहली चार सबमरीन में मौजूदा 83 MW रिएक्टरों के बजाय ज्यादा शक्तिशाली 190 MW प्रेशराइज्ड लाइट वॉटर रिएक्टर होंगे। भारत के मौजूदा SSBN अमेरिका, चीन और रूस के SSBN के आधे से कम साइज के हैं। के-4 मिसाइलों की ऑपरेशनल तैनाती के बाद 5000 से 6000 किमी रेंज क्लास में के-5 और के-6 मिसाइलें आएंगी। इससे भारत को अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के साथ बड़े अंतर को कम करने में मदद करेगी। इन देशों के पास इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों की रेंज है।
भारत के न्यूक्लियर ट्रायड के पहले दो हिस्से ज्यादा मजबूत हैं। इसमें जमीन पर आधारित बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हैं। जिनका नेतृत्व अग्नि-5 करती है, जिसकी मारक क्षमता 5000 किमी से ज्यादा और राफेल, सुखोई-30MKI और मिराज-2000 जैसे फाइटर जेट परमाणु ग्रेविटी बम गिराने में सक्षम हैं।