प्रतीकात्मक फोटो, सोर्स- सोशल मीडिया
Karnataka News: पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघ के शरीर पर कोई गोली या जाल के निशान नहीं मिले, लेकिन जहर देने की पुष्टि हुई है। वन मंत्री एश्वर खंड्रे ने घटना की गंभीरता को देखते हुए एमएम हिल्स को टाइगर रिजर्व घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने और गश्त, निगरानी व मुआवजा व्यवस्था को मजबूत करने के निर्देश दिए हैं।
कर्नाटक के माले महादेवर (एमएम) हिल्स वन्यजीव अभयारण्य में एक 12 वर्षीय बाघ की मौत ने पूरे वन विभाग को झकझोर दिया है। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि बाघ को जहर देकर मारा गया और बाद में उसके शव को तीन टुकड़ों में काटा गया। इस घटना ने न केवल राज्य में वन्यजीव सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकार को कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। वन मंत्री एश्वर खंड्रे ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि एमएम हिल्स को टाइगर रिजर्व घोषित करने की दिशा में त्वरित कार्रवाई की जाए और स्थानीय समुदाय से राय लेकर रिपोर्ट तैयार की जाए।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, 2 अक्टूबर को एमएम हिल्स के जंगल में बाघ का शव बरामद किया गया था। जांच में न तो किसी तरह की गोली या फंदे के निशान मिले और न ही शरीर के अंग गायब पाए गए। इससे यह स्पष्ट हुआ कि बाघ की मौत किसी घातक रासायनिक पदार्थ (जहर) से हुई है। पुलिस ने एक संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लिया है और पूछताछ जारी है।
घटना के बाद मंत्री एश्वर खंड्रे ने राज्य के सभी टाइगर रिजर्व और मैसूरु डिवीजन के वन अधिकारियों के साथ आपात वीडियो कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा कि राज्य वन बोर्ड पहले ही एमएम हिल्स को टाइगर रिजर्व घोषित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे चुका है। अब अधिकारियों को स्थानीय लोगों से परामर्श लेकर अंतिम रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया है।
मंत्री ने कहा कि क्षेत्र में गश्त को और सघन किया जाए और किसी भी प्रकार की लापरवाही पर तत्काल कार्रवाई की जाए। उन्होंने निर्देश दिया कि सभी रेंज अधिकारी M-STRiPES डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम का सही उपयोग करें और गश्त के दौरान GPS टैग वाली तस्वीरें लेकर वरिष्ठ अधिकारियों को भेजें ताकि हर गतिविधि की सटीक निगरानी हो सके।
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खंड्रे ने यह भी कहा कि जंगल के आसपास के गांवों के निवासियों और उनके मवेशियों का विस्तृत डेटा तैयार किया जाए। यदि किसी वन्यजीव द्वारा मवेशियों को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो पीड़ितों को तुरंत मुआवजा दिया जाए। इससे ग्रामीणों और वन विभाग के बीच भरोसा कायम रहेगा और प्रतिशोध में वन्यजीवों को नुकसान पहुँचाने की घटनाएं कम होंगी।