कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ सुनवाई
नई दिल्ली : जहां एक तरफ दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी के कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ 2020 में कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान देने और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामले में अधीनस्थ अदालत की सुनवाई पर रोक लगाने से बीते मंगलवार 18 मार्च को इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आगामी 19 मई की तारीख निर्धारित की। वहीं यह मामला आज 20 मार्च को अधीनस्थ अदालत के समक्ष सूचीबद्ध है।
बीते 18 मार्च को जस्टीस रविंद्र डुडेजा ने सत्र अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली भाजपा नेता की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस भी जारी किया था जिसमें इस मामले में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा उन्हें जारी किए गए समन के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। जस्टीस ने कहा था कि, ‘‘अधीनस्थ अदालत की सुनवाई पर रोक लगाने की कोई जरूरत नहीं है। इस अदालत को सुनवाई पर रोक लगाना जरूरी नहीं लगता। अधीनस्थ अदालत मामले में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है।”
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बीते मंगलवार 18 मार्च को को मिश्रा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि अधिनियम की धारा 125 एक गैर-संज्ञेय अपराध है और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 (2) के तहत प्रक्रिया का पालन किए बिना प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। जेठमलानी ने तब दलील दी थी कि कथित ट्वीट का उद्देश्य न तो विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना था और न ही उस दौरान ऐसी कोई स्थिति पैदा की गई थी।
उन्होंने यह भी कहा था कि कपिल मिश्रा ने चुनाव के दौरान ट्वीट करके उन ‘‘असामाजिक और राष्ट्रविरोधी” तत्वों की आलोचना की थी, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ आंदोलन की आड़ में माहौल खराब करना चाहते थे। उन्होंने कहा था कि ट्वीट में मिश्रा यह कहना चाहते थे कि अगर कोई देश को बांटने की कोशिश करेगा, तो राष्ट्रवादी लोग उसे रोक देंगे।
वहीं दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा था कि ट्वीट का मकसद दो धार्मिक समुदायों के बीच नफरत को बढ़ावा देना था। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर दो अदालतों के निष्कर्ष एक जैसे हैं और मिश्रा की दलीलों पर आरोप तय करने के दौरान विचार किया जा सकता है।
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हाई कोर्ट ने कहा था कि, ‘‘कार्यवाही जारी रहने दीजिए। मुकदमे के जारी रहने से आप पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। सुनवाई पर रोक लगाने की कोई जरूरत नहीं है। 19 मई की तारीख तय की जाती है। इस बीच, निचली अदालत कार्यवाही जारी रख सकती है।”
इसके बाद, वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि यदि वह आरोप तय करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ती है, तो उसे सत्र न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। जस्टीस डुडेजा ने कहा था कि, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि आरोप तय करने के सवाल पर विचार करते समय निचली अदालत संबंधित पक्षों द्वारा प्रस्तुत किये गए प्रस्तुतीकरण के आधार पर स्वतंत्र मूल्यांकन करेगी।”
सत्र न्यायालय ने बीते 7 मार्च को मिश्रा की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि उनका बयान ‘‘धर्म के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देने का एक प्रयास प्रतीत होता है, जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से उस देश का उल्लेख किया गया है, जिसका प्रयोग आम बोलचाल में अक्सर एक विशेष धर्म के सदस्यों को दर्शाने के लिए किया जाता है।”
जानकारी दें कि, कानून मंत्री कपिल मिश्रा ने बीते 23 जनवरी 2020 को ‘X’ पर पोस्ट कर दिल्ली विधानसभा चुनाव के संबंध में सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक बयान पोस्ट किए थे। निर्वाचन अधिकारी ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई। सत्र अदालत ने फिर बीते 7 मार्च के अपने आदेश में कहा कि वह मजिस्ट्रेट अदालत के इस निर्णय से पूरी तरह सहमत है कि निर्वाचन अधिकारी द्वारा दर्ज की गई शिकायत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 (चुनाव के संबंध में वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत अपराध का संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त है।