केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह-भारत का कचरा बाजार पाकिस्तान के पूरे बजट से बड़ा (फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने प्लास्टिक कचरे को ‘बर्बादी नहीं, अवसर’ बताते हुए बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत में 50-60% कचरा सिंथेटिक है और इसका बाजार 50 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है—जो पाकिस्तान के पूरे सालाना बजट से भी बड़ा है। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित वैश्विक सम्मेलन में उन्होंने रिसाइक्लिंग को लेकर देश की सुस्ती पर सवाल उठाते हुए कहा कि “जिस दिन हर कूड़ा सोना बन जाएगा, कोई भी उसे सड़क पर नहीं छोड़ेगा।”
गिरिराज सिंह ने बताया कि उनका मंत्रालय जूट आधारित पॉलिमर और जैविक मिश्रणों पर काम कर रहा है, जिसमें गन्ना, बांस और लकड़ी का चूरा शामिल है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्लास्टिक की असली चुनौती बोतलें नहीं, बल्कि सूक्ष्म कण हैं जो खुले में फैलते जा रहे हैं। उन्होंने गांवों और शहरों की दुर्दशा पर चिंता जताई और व्यापक नीति व नवाचार की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने रिसाइक्लिंग को निर्यात उद्योग में प्रतिस्पर्धा का नया हथियार बताया।
‘कूड़े को सोना’ बनाने का विजन
मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि देश में रिसाइक्लिंग की गंभीरता अब दिखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि “सिर्फ बोतलें नहीं, बल्कि प्लास्टिक के हर रूप को पुनः उपयोग में लाने की जरूरत है।” मंत्री ने यह भी बताया कि अब ऐसी मशीनें देश में ही बन रही हैं जो पहले विदेश से मंगाई जाती थीं, जिससे आत्मनिर्भरता को बल मिल रहा है।
सूक्ष्म प्लास्टिक है सबसे बड़ी चुनौती
गिरिराज सिंह ने जोर देकर कहा कि माइक्रोन स्तर पर फैले प्लास्टिक को नियंत्रित करना सबसे कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि कई स्थानों पर लोग अब प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा कर रहे हैं, कुछ जगहों पर इनका आयात भी हो रहा है। लेकिन असली चुनौती सूक्ष्म प्लास्टिक से निपटना है, जिसके लिए नीतिगत नवाचार और तकनीकी समाधान जरूरी हैं।
उन्होंने कहा कि देश के कई गांव और शहर प्लास्टिक कचरे से भरे पड़े हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए एक व्यापक नीति और नवाचार की जरूरत है। मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय जूट आधारित पॉलिमर पर भी काम कर रहा है और बायो-पॉलिमर की नई संभावनाओं को तलाशने के लिए गन्ना, बांस और चूरा से नए मिश्रण विकसित किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “जिस दिन सड़क पर पड़ा हर कचरा ‘सोने’ के बराबर हो जाएगा, उसे उठाने से कोई नहीं चूकेगा। हमें ऐसे समाधान की जरूरत है जो लाभदायक होने के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी टिकाऊ हों।”