एनडी तिवारी (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: आज यानी शुक्रवार 18 अक्टूबर को एक ही राजनीतिक शख्सियत की जयंती और पुण्यतिथि दोनों है। हम उस राजनेता की बात कर रहे हैं जिसे भारतीय सियासत का अजातशत्रु कहा गया। जो एक ही नहीं दो राज्यों का मुख्यमंत्री रहा। जिसने पीएम के कुर्सी के अलावा वो सबकुछ हासिल किया जो कि एक राजनेता का ख्वाब होता है। जिसकी जिंदादिली के चर्चे आज भी मशहूर हैं।
जी हां, आज उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व सीएम और दिवंगत राजनेता एनडी तिवारी की जयंती और पुण्यतिथि दोनों है। एक तरफ उनकी 99वीं जयंती है तो दूसरी तरफ 6वीं पुण्यतिथि। 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल में उनका जन्म हुआ तो 18 अक्टूबर को ही साल 2018 में दिल्ली के मैक्स अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।
एनडी तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। लेकिन जब देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नॉन को-ऑपरेटिव मूवमेंट चल रहा था तब वह नौकरी छोड़कर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए। एनडी तिवारी भी पिता के कदमों पर चलते हुए साल 1942 में मात्र 17 साल की उम्र में इसमें शामिल हो गए। इस दौरान वह जेल भी गए। लेकिन जेल से निकलकर देश के आजाद होते-होते सक्रिय राजनीतिक का हिस्सा बन गए।
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60 के दशक में भारतीय राजनीति में अधिकतम राजनेता कांग्रेस से अपने सियासी सफर की शुरुआत कर रहे थे। लेकिन एनडी तिवारी लीक से अलग चले। वह साल 1952 में नैनीताल सीट पर प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनावी मैदान में उतरे और विधायक भी बने। इसके बात 1957 में उन्होंने यहां दोबारा जीत दर्ज की। लेकिन 1963 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए।
एनडी तिवारी देश के इकलौते ऐसे राजनेता हैं जो एक ही नहीं दो राज्यों के सीएम रह चुके हैं। वह तीन बार देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तो एक बार देवभूमि उत्तराखंड के सीएम भी बने। उत्तर प्रदेश में 1976 से 1977, 1984 से 1985 और 1988 से 1989 तक वह सीएम रहे। जबकि उत्तराखंड में उनका कार्यकाल 2002 से 2007 तक रहा।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने से पहले एनडी राजीव गांधी की सरकार में विदेश और वित्त मंत्री भी रहे। 2007 में उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया, जिस पद पर वे 2009 तक रहे। इसी दौरान उनकी कथित एडल्ट सीडी का मामला सामने आया, जिसके बाद एनडी स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर सक्रिय राजनीति से दूर हो गए।
एनडी तिवारी को प्रधानमंत्री न बन पाने का मलाल आजीवन रहा। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि 1991 का लोकसभा चुनाव जीत जाते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे। दरअसल, उस समय राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस हिल गई थी, जिसे पटरी पर लाने के लिए कई पुराने नेताओं को मुख्यधारा की राजनीति में वापस लाया गया, जिनमें एनडी तिवारी और पीवी नरसिम्हा राव भी शामिल थे।
1991 में एनडी तिवारी ने नैनीताल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और भाजपा के बलराज पासी से करीब 11 हजार वोटों से हार गए। इस चुनाव में उन्होंने अपने प्रचार के लिए अभिनेता दिलीप कुमार को उतारा था, लेकिन दिलीप कुमार का मुसलमान होना एनडी के लिए उल्टा पड़ गया। उन्हें हमेशा इस बात की जलन रहती थी कि वे पीएम नहीं बन पाए और पीवी नरसिम्हा राव बिना चुनाव लड़े ही पीएम बन गए।
एनडी तिवारी का राजनीतिक जीवन जितना समृद्ध रहा, उतना ही उनका निजी जीवन भी मशहूर रहा। 1954 में उन्होंने सुशील तिवारी से विवाह किया। इस विवाह से कोई संतान नहीं हुई। इसी बीच 70 के दशक में एनडी को जनता पार्टी सरकार में मंत्री रहे प्रो. शेर सिंह राणा की बेटी उज्ज्वला से प्यार हो गया और उनके रिश्ते से रोहित शेखर का जन्म हुआ।
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एनडी ने करीब 40 साल तक उज्ज्वला से अपने रिश्ते को नकारा, लेकिन जब 2008 में उनके बेटे रोहित शेखर कोर्ट गए तो कोर्ट ने डीएनए टेस्ट के आधार पर एनडी तिवारी को रोहित शेखर का जैविक पिता घोषित कर दिया। कोर्ट के फैसले के कुछ समय बाद 14 मई 2014 को एनडी ने उज्ज्वला से शादी कर ली और रोहित को सार्वजनिक रूप से अपना बेटा मान लिया।
भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता हुए हैं जिनकी तुलना अजातशत्रु से की जाती है। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता भी शामिल हैं। एनडी तिवारी का मामला भी कुछ ऐसा ही था। राजनीति में उनका कोई कट्टर दुश्मन नहीं था। राजनीतिक हलकों में उन्हें ‘पंडित जी’ कहकर संबोधित किया जाता था।
ब्लैक एंड व्हाइट युग से लेकर इंटरनेट युग तक हमेशा चर्चा में रहने वाले एनडी तिवारी कांग्रेसी शैली की राजनीति का बेहतरीन उदाहरण हैं। मुसीबत के समय वे पार्टी की मदद करते हैं, मन बदलने पर अपनी पार्टी बनाते हैं, लेकिन फिर सोनिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं। उन्होंने अखिलेश को सीएम बनाने के फैसले की तारीफ भी की और 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की जीत की कामना भी। एनडी की स्वीकार्यता इस बात से भी समझी जा सकती है कि जब भाजपा 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज रही थी, तब भी एनडी के भाजपा में शामिल होने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म था, जिस पर पार्टी को सफाई देनी पड़ी थी।