इंदिरा गांधी के साथ माधव राव सिंधिया (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: देश आज यानी सोमवार 29 सितंबर को एक ऐसे राजनेता की पुण्यतिथि मना रहा है। जिसने अटल बिहारी वाजपेयी को शिकस्त दी थी। जिसने महज 26 साल की उम्र में जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद की देहरी लांघी थी। जो गांधी परिवार का सबसे खास माना जाता था फिर भी दो बार मध्य प्रदेश का सीएम बनते-बनते चूक गया।
अब तक आप यह बात समझ गए होंगे कि हम किस दिग्गज राजनेता की चर्चा कर रहे हैं! आज पूर्व कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया की 23वीं पुण्यतिथि है। 30 सितंबर 2001 को एक हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। यही वजह है कि आज हम उनके जीवन से जुड़ी कुछ यादें आपके साथ साझा कर रहे हैं।
माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को मुंबई में हुआ था। माता विजयाराजे सिंधिया पहले से ही राजनीति में थीं। उनका विवाह 8 मई 1966 को माधवी राजे सिंधिया से हुआ। उनका एक बेटा ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी सक्रिय राजनीति में है। वहीं बेटी का नाम चित्रांगदा सिंधिया है। करिश्माई व्यक्तित्व वाले माधवराव सिंधिया ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।
माधवराव सिंधिया की दो बार लगभग ताजपोशी हो गई थी। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 1989 में चुरहट लॉटरी कांड के दौरान अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन पर इस्तीफा देने का काफी दबाव था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चाहते थे कि माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन अर्जुन सिंह ने इस्तीफा नहीं दिया। जिसके कारण अर्जुन सिंह को राजीव गांधी की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी।
इसके अलावा उनके जीवन में एक और मौका ऐसा आया जब माधवराव सिंधिया को लगभग मुख्यमंत्री बना दिया गया था। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण मध्य प्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। उसके बाद 1993 में मध्य प्रदेश में चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। उस समय कांग्रेस को 320 में से 174 सीटें मिली थीं। मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए, इस पर चर्चा शुरू हुई तो तीन लोगों के नाम पर खूब चर्चा हो रही थी। इसमें श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, सुभाष यादव शामिल थे।
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यहां तक कहा जाता है कि माधवराव सिंधिया के लिए दिल्ली में एक विमान स्टैंडबाय पर रखा गया था। क्योंकि माधवराव सिंधिया को कभी भी ताजपोशी के लिए भोपाल जाना पड़ सकता था। लेकिन नरसिंह राव ने इन सभी लोगों को नजरअंदाज कर दिग्विजय सिंह की ताजपोशी की घोषणा कर दी, जो अर्जुन सिंह के विश्वासपात्र थे।
माधवराव सिंधिया ने 26 साल की उम्र में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और इसके साथ ही उनकी जीत का सिलसिला भी शुरू हो गया। आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में माधवराव सिंधिया ने गुना से फिर जीत हासिल की। इस चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश की और सफल भी रहे। लेकिन 80 के दशक में उनका झुकाव कांग्रेस की ओर हुआ और उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता भी ले ली।
सबसे दिलचस्प लड़ाई 1984 के लोकसभा चुनाव में हुई। भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से चुनाव लड़े। ऐसे में कांग्रेस ने आखिरी वक्त में माधवराव सिंधिया के नाम का पासा फेंका और उन्हें ग्वालियर से अपना उम्मीदवार बना दिया। माधवराव सिंधिया इस चुनाव में भी जीते और उन्हें इसका तोहफा भी मिला। कई मंत्री पद संभाल चुके माधवराव सिंधिया को पहली बार रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी।
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