चौधरी देवी लाल (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: हरियाणा में चुनावी माहौल गरमाया हुआ है और आज यानी 25 सितंबर को उस दिग्गज राजनेता की जयंती है जिसे हरियाणा के सबसे बड़े राजनैतिक कुनबे के मुखिया कहा जाता है। उसे सियासी हल्कों में ताऊ के नाम से भी जाना जाता है। यह वही नेता हैं जिन्होंने यह कहते हुए पीएम पद ठुकरा दिया कि मुझे सब ताऊ के नाम से बुलाते हैं। मुझे ताऊ ही बने रहने दीजिए। जिसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी दी गई थी।
हरियाणा के जनक कहे जाने वाले ताऊ देवीलाल भारतीय राजनीति में किसान नेता के रूप में दर्ज थे। वर्ष 1989 में ताऊ देवीलाल को बहुमत से संसदीय दल का नेता चुना गया था। इसके बावजूद उन्होंने प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया था। अहंकारी और दबंग माने जाने वाले देवीलाल की गिनती देश के उन चुनिंदा नेताओं में होती है, जो देश को आजादी मिलने से पहले और बाद में भी सक्रिय रूप से राजनीति में शामिल रहे।
चौधरी देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1914 को हुआ था और उन्होंने 6 अप्रैल 2001 को अंतिम सांस ली। हरियाणा में लोग उन्हें ‘ताऊ देवीलाल’ कहकर पुकारते थे। हरियाणा के एक प्रमुख राजनेता होने के नाते वे 19 अक्टूबर 1989 से 21 जून 1991 तक भारत के उप प्रधानमंत्री रहे। इसके अलावा वे दो बार (21 जून 1977 से 28 जून 1979 और 17 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 1989) हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे। उनकी समाधि-संघर्ष घाट दिल्ली में है।
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ताऊ देवीलाल ने महात्मा गांधी के आह्वान पर देवीलाल ने देश की लड़ाई में लाला लाजपत राय के साथ प्रदर्शनों में भी हिस्सा लिया था। 1952 में वे पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद आपातकाल के दौरान देवीलाल का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। वे जनता पार्टी में शामिल हो गए। चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक सत्ता के गलियारों में वे छाए रहे। खास तौर पर 1987 से 1991 तक उन्होंने भारतीय राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाई।
हरियाणा के सिरसा के चौटाला गांव के जाट किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले देवीलाल का परिवार राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है। उनके बेटे, पोते और परपोते राजनीति में सक्रिय हैं। लेकिन व रसूख नहीं है जो ताऊ देवीलाल का हुआ करता था। क्योंकि ताऊ देवीलाल जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ वाले नेता माने जाते हैं। वे हमेशा ग्रामीण लोगों के संपर्क में रहते थे। अचानक किसी गांव में पहुंचकर खाना खाना, हुक्का पीना और ठेठ ग्रामीण अंदाज में लोगों से बात करना उन्हें जननेता का दर्जा देता था।
चौधरी देवीलाल 1989 के लोकसभा चुनाव में राजनीति की धुरी थे। ताऊ ने वीपी सिंह के साथ देशभर में यात्राएं कीं और जनसभाएं कर लोगों तक पहुंचे। इस दौरान राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ में दोपहर 3 बजे उनकी सभा तय थी। लेकिन ताऊ रात 10 बजे तक नहीं आए। इतना समय बीत जाने के बाद भी लोग मैदान में डटे रहे। इसके बाद जब वे मंच पर आए तो छा गए। इस दौरान ताऊ ने लोगों से नारा लगवाया, ‘तख्त बदल दो, ताज बदल दो, बेईमानों का राज बदल दो’। यह गुस्सा भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई में अहम हथियार बना।
उपप्रधानमंत्री बनने के बाद का दौर चौधरी देवीलाल के लिए काफी खराब रहा। उसके बाद हुए तीन लोकसभा चुनावों 1991, 1996 और 1998 में चौधरी देवीलाल हरियाणा की रोहतक सीट से खड़े हुए लेकिन तीनों ही चुनाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा से हार गए। आखिरकार उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने उन्हें 1998 में राज्यसभा का सदस्य बनाया और राज्यसभा के सदस्य रहते हुए ही 2001 में उनका निधन हो गया।
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