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जयंती विशेष: ऐसा कवि जिससे डाकुओं ने किडनैप कर के सुनी कविताएं, ठहाके लगाने के बाद दिए 100 रुपए

आज यानी बुधवार 18 सितंबर को जिस कवि का जन्मदिन है। उसका असली नाम असली नाम प्रभु लाल गर्ग था। लेकिन अगर आप साहित्य के क्षेत्र में उन्हें इस नाम से तलाशने जाएंगे तो गच्चा खा जाएंगे। इस नाम के पीछे की क्या कहानी है और उस कवि के जीवन का सबसे दिलचस्प किस्सा क्या है पढ़िए इस आर्टिकल में।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Sep 18, 2024 | 12:39 AM

दिवंगत कवि काका हाथरसी (सोर्स-सोशल मीडिया)

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नवभारत डेस्क: आज यानी बुधवार 18 सितंबर को जिस कवि का जन्मदिन है। उसका असली नाम असली नाम प्रभु लाल गर्ग था। लेकिन अगर आप साहित्य के क्षेत्र में उन्हें इस नाम से तलाशने जाएंगे तो गच्चा खा जाएंगे। क्योंकि उन्हें जो प्रशस्ति मिली वह उनके उपनाम ने दिलवाई। खास बात यह कि जिस उपनाम ने उन्हें ख्याति दिलवाई वह उन्हें कविता के मंच से नहीं बल्कि नाटकों के मंचो सें मिली।

हम बात कर रहे हैं मशहूर कवि काका हाथरसी की। दरअसल प्रभु दयाल ‘काका’ नाम से नाटकों में अभिनय करते थे, जिससे उन्हें काफी प्रसिद्धि भी मिली। इसके बाद उन्होंने अपनी रचनाओं में काका का नाम जोड़ लिया। काका का जन्म 18 सितंबर 1906 को हाथरस में हुआ था। जिसके कारण वो हाथरसी हो गए।

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काका की अवधी कविताओं में हास्य के आवरण ओढ़े हुए समाज के वह पहलू होते थे जिनमें सुधार की जरूरत थी। हास्य और व्यंग्य के जरिए काका ने हर वह बात कही जो उस दौर में ज़रूरी थी और शायद आज भी ज़रूरी है। उसकी एक बानगी आपको यहां पर दिखाते हैं।

पत्रकार दादा बने, देखन उनके ठाठ
काग़ज़ कै कोटा झपट, करैं एक कै आठ
करैं एक कै आठ, चलि रही आपाधापी
दस हज़ार बतलाय, छपैं ढाई सौ कापी
विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं

दाढ़ी वाला चोटी का कवि

काका हाथरसी बड़ी दाढ़ी रखते थे। इसके साथ ही वह मशहूर भी थे। कवियों की जमात में उन्हें उस दौर का चोटी का कवि कहा जाता था। इसको लेकर भी काका ने व्यंग्यपूर्ण छंद कहा। इस छंद को पढ़कर आप सोचेंगे की अपने मुंह मियां मिंट्ठू बनने वाली इंसानी प्रवृत्ति से हटकर काका क्या सोचते थे।

बोले माइक पकड़ कर, पापड़चंद ‘पराग’
चोटी के कवि ले रहे, सम्मेलन में भाग
सम्मेलन में भाग, महाकवि गामा आए
काका, चाचा, मामाश्री, पाजामा आए
हमने कहा, व्यर्थ जनता को क्यों बहकाते?
दाढ़ी वालों को भी, चोटी का बतलाते

काका को संगीत का भी ज्ञान था, उन्होंने संगीत कार्यालय की स्थापना भी की थी जो शास्त्रीय संगीत पर एक पत्रिका प्रकाशित करता था। कवि सम्मेलनों में काका हाथरसी एक मशहूर नाम थे और उनकी कविताएँ सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे। भारत सरकार ने 1985 में काका जी को पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।

डाकुओं ने किडनैप कर के सुनी कविता

काका कम्युनिस्ट पार्टी के शिखर सम्मेलन में थे और मुरैना में डाकुओं का बोलबाला था। काका विद्वान और बलवी बैरागी ने मुरैना में एक कवि सम्मेलन में भाग लिया था। कवि सम्मेलन के समापन के बाद कुछ डाकू वहाँ आए और उन दोनों का अपहरण कर लिया, उनकी आँखों पर पट्टी बाँध दी और उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए ले गए।

कविता पढ़ने के बाद दिए 100 रुपए

डाकुओं ने काका-बैरागी को अपने अड्डे पर ले जाकर कहा कि, “तुम हमारे साथियों को कविताएँ सुनाओ।” उनके बाद काका वैज्ञानिक और बलवी बैरागी ने वहाँ अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं। जिनपर डाकुओं ने जमकर ठहाके भी लगाए। इसके बाद डाक ने उन्हें 100 रुपये दिए और उन्होंने लेने से मना कर दिया लेकिन डाक की पक्की गारंटी के बाद उन्होंने 100 रुपये ले लिए।

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Birthday special poet whose poems were heard by bandits after kidnapping him kaka hathrasi

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Published On: Sep 18, 2024 | 12:01 AM

Topics:  

  • Indian Poet

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