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जयंती विशेष: वो दिग्गज कांग्रेसी जिसने इंदिरा गांधी की एक टिप्पणी पर छोड़ दिया रेल मंत्रालय, लेकिन नहीं छोड़ी पार्टी

क्या आपको पता है कि देश में एक राजनेता ऐसा भी था जिसे पद से ज्यादा कद की परवाह थी। एक राजनेता ऐसा भी था जिसने रेल मंत्री का पद चुटकियों में छोड़ दिया था। ऐसा राजनेता जिसने कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा गांधी की आलोचना की। वो शख्स जिसने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज भी बुलंद की और कई बार जेल भी गए। आज यानी मंगलवार 3 अगस्त को हम उसकी 119वीं जयंती मना रहे हैं। तो चलिए आपको रूबरू करवाते हैं उस दिग्गज राजनेता के दिलचस्प किस्सों से।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Sep 03, 2024 | 05:45 AM

इंदिरा गांधी के साथ कमलापति त्रिपाठी (सोर्स-सोशल मीडिया)

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नवभारत डेस्क: क्या आपको पता है कि देश में एक राजनेता ऐसा भी था जिसे पद से ज्यादा कद की परवाह थी। एक राजनेता ऐसा भी था जिसने रेल मंत्री का पद चुटकियों में छोड़ दिया था। ऐसा राजनेता जिसने कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा गांधी की आलोचना की। वो शख्स जिसने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज भी बुलंद की और कई बार जेल भी गए। आज यानी मंगलवार 3 अगस्त को हम उसकी 119वीं जयंती मना रहे हैं। तो चलिए आपको रूबरू करवाते हैं उस दिग्गज राजनेता के दिलचस्प किस्सों से।

कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं की सूची में कई ऐसे नेता शामिल हैं, जिनका पूरे देश में सम्मान है। आज हम ऐसे ही एक शीर्ष नेता की बात करेंगे, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में रेल मंत्री के तौर पर भी अपनी सेवाएं दी। हम बात कर रहे हैं कमलापति त्रिपाठी की, जो अपनी तरह के इकलौते नेता थे, जिन्हें सकारात्मक रूप से याद किए जाने के कई कारण हैं।

यह भी पढे़ं:-  जन्मदिन विशेष: जब राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी की चुनावी समरभूमि पर उतरीं थी मेनका गांधी, जानिए क्या थे कारण?

कमलापति त्रिपाठी राजनीति में ऐसी शख्सियत थे, जिनकी कहानियां हमें कुछ न कुछ सिखाती हैं। रेलवे में सेवाएं दी स्वतंत्रता आंदोलन से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले कमलापति त्रिपाठी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने से कभी नहीं चूके। वे कई बार जेल भी गए। वे 1937 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए। फिर वे कई सालों तक विधायक रहे। 1952 में उन्होंने सूचना एवं सिंचाई मंत्री का पदभार संभाला। यह वह दौर था, जब पंडित कमलापति त्रिपाठी को लोग पहचानने लगे थे। कांग्रेस पार्टी के भीतर सबसे लोकप्रिय चेहरों में कमलापति त्रिपाठी का नाम सबसे पहले आने लगा।

यूपी के सीएम बने कमलापति

4 अप्रैल 1971 को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कमान पंडित कमलापति त्रिपाठी को सौंपी गई, यानी उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। उनका कार्यकाल करीब दो साल 69 दिन तक चला। बाद में 12 जून 1973 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को रुकने नहीं दिया। साल 1975 से 1977 तक और आगे यानी साल 1980 में उन्होंने केंद्र में मंत्री का पद संभाला और रेल मंत्री बनकर रेलवे की सेवा की।

इंदिरा गांधी से हुए मतभेद

कमलापति अब एक साधारण नेता नहीं रह गए थे, बल्कि अपने सिद्धांतों पर चलने वाले और अपने साथी का साथ कभी न छोड़ने वाले नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे। एक साहसी नेता जो 80 के दशक में वैचारिक मतभेदों को लेकर भी इंदिरा गांधी से लोहा ले सकते थे। यह 24 अक्टूबर 1980 की घटना है, जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रेलवे विभाग पर टिप्पणी की थी।

अपने फैसले पर टिके रहे त्रिपाठी

दरअसल, इंदिरा ने अपनी सरकार के अलग-अलग विभागों के काम की तारीफ करते हुए कहा था कि जनता पार्टी सरकार में टूटी व्यवस्था अब एक-एक करके पटरी पर आ रही है लेकिन रेलवे विभाग का काम उम्मीद के मुताबिक नहीं हो रहा है। पूर्व पीएम का इतना ही कहना था कि सरकार में दूसरी बार रेल मंत्री बने पंडित कमलापति ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इंदिरा ने 23 नवंबर 1980 को एक पत्र में लिखा था कि त्रिपाठी जी ने इस्तीफा दे दिया है, मुझे इसका दुख है। मैं चाहती हूं कि वह कैबिनेट में बने रहें। उस दौरान इंदिरा ने पंडित जी से बात करने और उनके इस्तीफा वापस लेने के लिए 17 दिनों तक इंतजार किया लेकिन पंडित जी अपने फैसले पर अड़े रहे।

पल भर में ठुकराई पीएम की कुर्सी

मार्च 1987 की बात है जब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पीएम राजीव गांधी के बीच मतभेद गहराते जा रहे थे। उस समय के कमलापति त्रिपाठी के पत्र बहुत कुछ बयां करते हैं। राष्ट्रपति और पीएम के बीच यह मतभेद पोस्टल बिल को लेकर था, जो इतना गहरा हो गया था कि जैल सिंह राजीव सरकार को बर्खास्त कर वैकल्पिक सरकार बनाना चाहते थे। इस दौरान ज्ञानी जैल सिंह ने एक रात अपने करीबी पत्रकार को अपना दूत बनाकर पंडित जी के पास भेजा और वैकल्पिक सरकार में पीएम बनने का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा, लेकिन पंडित जी ने तब साफ शब्दों में कहा कि ऐसा करना मेरे स्वभाव और परवरिश में नहीं है। इस तरह पंडित जी ने पीएम बनने के प्रस्ताव को पल भर में ठुकरा दिया।

यह भी पढ़ें:-  जयंती विशेष: ऐसे थे पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल, जिनके लिए ओमान के सुल्तान ने तोड़ दिए थे प्रोटोकॉल

पंडित कमलापति त्रिपाठी का जन्म 3 सितंबर 1905 को वाराणसी में हुआ था। उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री और डी. लिट की उपाधि प्राप्त की थी। कमलापति की पत्नी का नाम चंद्रा त्रिपाठी था और दोनों के तीन बेटे और दो बेटियां हैं। जीवन भर कांग्रेसी रहे पंडित जी की चार पीढ़ियां कांग्रेस से जुड़ी हैं। उनके बेटे लोकपति त्रिपाठी भी मंत्री पद संभाल चुके हैं। लोकपति त्रिपाठी के बेटे राजेशपति त्रिपाठी भी चुनाव लड़ चुके हैं। राजेशपति त्रिपाठी के बेटे ललितेशपति त्रिपाठी हैं और वर्तमान में वे मड़ियांव से विधायक हैं। पंडित कमलापति त्रिपाठी का निधन 8 अक्टूबर 1990 को हुआ।

Birth anniversary special the veteran congressman who left the railway ministry over a comment by indira gandhi

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Published On: Sep 03, 2024 | 05:45 AM

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