संसद में इंदिरा गांधी (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: देश आज यानी मंगलवार 19 नवंबर 2024 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 107वीं जयंती मना रहा है। इंदिरा गांधी ने जब राजनीति में कदम रखा तो उन्हें भरी संसद में अपमानित किया गया। उन्हें गूंगी गुड़िया की उपाधि देते हुए मजाक बनाया गया। लेकिन उसी संसद में दो साल के अंदर इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा गया।
आलोचनाएं और कठिनाइयों को यदि हम सकारात्मक तौर पर लेकर संकल्पित हो जाएं तो हमारे विरोधी भी हमारी तारीफ करते हुए दिखाई देंगे। इसका सबसे सटीक उदाहरण इंदिरा गांधी हैं। आज उनकी जयंती है। इस मौके पर हम उनका गूंगी गुड़िया से लेकर दुर्गा के अवतार तक का सफर लेकर आए हैं। इंदिरा का जन्म 19 नवंर 1917 को प्रयागराज में हुआ। लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद वह सियासत में आईं। यह सारी बातें आपको पता होंगी। इसलिए हम सीधा अपनी कहानी पर आते हैं।
यह 1966 की बात है, जब लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थीं। उस समय देश बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा था। उस समय आर्थिक मंदी और सूखे की समस्या एक गंभीर मुद्दा था। इंदिरा, जो अभी-अभी राजनीति में आई थीं, को इन समस्याओं से लड़ने का ज़्यादा अनुभव नहीं था। प्रधानमंत्री बनने के एक-दो साल बाद तक वे काफ़ी तनाव में रहती थीं। वे संसद में भाषण और बहस जैसे कार्यक्रमों से बचने की कोशिश करती थीं।
भारत की दिग्गज हस्तियों की कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
कहा जाता है कि 1969 में जब उन्हें देश का बजट पेश करना था, तो वे इतनी डरी हुई थीं कि एक शब्द भी नहीं बोल पा रही थीं। वे इन कार्यक्रमों में इतनी घबरा जाती थीं कि उन्हें सिर दर्द या पेट खराब हो जाता था। इंदिरा गांधी के निजी राजनीतिक चिकित्सक रहे डॉ. केपी माथुर ने अपनी किताब “द अनसीन इंदिरा गांधी” में इस बारे में काफ़ी ज़िक्र किया है। उनकी इस असहजता के कारण विपक्षी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने संसद में उन्हें “गूंगी गुड़िया” कहकर उनका मजाक उड़ाया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस आलोचना को सकारात्मक रूप से लिया और इसे अपने नेतृत्व को सुधारने का अवसर बनाया।
उन्होंने विपक्षी पार्टी के नेताओं के वर्चस्व को चुनौती दी और राष्ट्रहित के लिए कई ऐसे काम किए और धीरे-धीरे अपनी छवि बदलने में सफल रहीं। पार्टी में चल रही अंदरूनी कलह के कारण इंदिरा ने अलग रास्ता चुना। जिसमें 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया। इसमें मोरारजी देसाई ने “कांग्रेस (ओ)” और इंदिरा ने “कांग्रेस (आर)” बनाई। यहीं से उनके दुर्गा बनने का सफर शुरू हुआ।
इस दौरान उन्होंने देश के हित के लिए कई क्रांतिकारी फैसले भी लिए। वर्ष 1969 में इंदिरा गांधी ने आम लोगों और आम किसानों के लिए 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण, भूमिहीन और समाज के कमजोर वर्गों के लिए “भूमि सुधार नीति” बनाना, 1971 के लोकसभा चुनाव में “गरीबी हटाओ” का नारा देने जैसे कई महत्वपूर्ण काम किए।
1970 के दशक में देश की राजनीति काफी उथल-पुथल से गुजर रही थी। उस समय केंद्र में इंदिरा की सरकार थी। जनता पार्टी मुख्य विपक्षी दल थी और अटल बिहारी वाजपेयी उसके नेता थे। 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया, जिसके कारण भारत को अचानक युद्ध का सामना करना पड़ा। यह वह समय था जब पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (जिसे आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है) के लोगों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा अत्याचार किए जा रहे थे। इसके कारण लाखों शरणार्थी भारत आ गए।
इस संकट को हल करने और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का साहसिक फैसला लिया। 1971 में इंदिरा कोलकाता में एक जनसभा कर रही थीं। उसी शाम पाकिस्तान की वायुसेना ने भारत पर बमबारी शुरू कर दी। जिसमें पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर और आगरा के सैन्य हवाई अड्डों को निशाना बनाया गया। उसी पल इंदिरा ने फैसला किया कि वह पाकिस्तान को सबक सिखाएंगी।
उन्होंने इस युद्ध में पाकिस्तान को हरा दिया। इस हार के कारण पाकिस्तान का विभाजन हुआ। जिसके कारण एक नया देश “बांग्लादेश” अस्तित्व में आया। यह सिर्फ एक सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि इंदिरा के नेतृत्व और साहस का एक उदाहरण थी। विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी, जो आमतौर पर इंदिरा के आलोचक थे, ने इस जीत के बाद संसद में उनकी प्रशंसा की और उन्हें “दुर्गा” का अवतार कहा।
इंदिरा गांधी को यह उपाधि इसलिए दी गई, क्योंकि संकट की घड़ी में अपनी ताकत और धैर्य के साथ उन्होंने न सिर्फ देश का नेतृत्व किया, बल्कि पाकिस्तान का भूगोल भी बदल दिया। इस जीत ने इंदिरा को “लौह महिला” और “दुर्गा” के रूप में स्थापित किया, जिन्हें शक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक माना जाता है।