भीकाजी कामा (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: आज यानी मंगलवार 24 सितंबर को एक ऐसी शख्सियत की जयंती है जिसे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़ी गई क्रांति की जननी की उपाधि दी जाती है। जिसने सबसे पहले भारतीय ध्वज लहराया था। आज उनकी 163वीं जयंती है। लेकिन शायद ही उनके नाम या योगदान के बारे में किसी को पता हो।
हम बात कर रहे हैं मैडम भीकाजी कामा की, जिन्होंने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ट में सातवें अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय तिरंगा फहराया था। उन्होंने इस तिरंगे में भारत के विभिन्न समुदायों को दर्शाया था। उनका तिरंगा आज के तिरंगे जैसा नहीं था।
भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को बॉम्बे के एक पारसी परिवार में हुआ था। भीकाजी कामा ने देश और दुनिया में भारत की आजादी के लिए समर्थन जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने लंदन, जर्मनी और अमेरिका का दौरा किया और भारत की आजादी के पक्ष में माहौल बनाया।
यह भी पढ़ें:- जयंती विशेष: ब्रह्मांड में सूर्य के रहने तक रहेगा कालजयी कवि ‘दिनकर’ का नाम
वर्ष 1896 में मुंबई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की। बाद में वे खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं। इलाज के बाद वे ठीक हो गईं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई। वर्ष 1906 में वे लंदन में रहने लगीं, जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, हरदयाल और वीर सावरकर से हुई। लंदन में रहते हुए वे दादाभाई नौरोजी की निचली सचिव भी रहीं।
दादाभाई नौरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियाई थे। जब वे हॉलैंड में थीं, तब उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी लेख प्रकाशित किए और उन्हें लोगों में वितरित भी किया। जब वे फ्रांस में थीं, तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वापस बुलाने की मांग की, लेकिन फ्रांस सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया।
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जब्त कर ली और भीकाजी कामा के भारत आने पर प्रतिबंध लगा दिया। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की जननी मानते थे, जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिश विरोधी और असंगत कहते थे। भारत का पहला झंडा बनाया भीकाजी ने अपने सहयोगियों विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से वर्ष 1905 में भारत का पहला झंडा बनाया।
“यह भारतीय स्वतंत्रता का ध्वज है। इसका जन्म हो चुका है। यह भारत के युवा वीर सपूतों के खून से पवित्र हो चुका है। मैं यहां उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों से अनुरोध करता हूं कि वे खड़े होकर भारत की स्वतंत्रता के इस ध्वज की पूजा करें।” यह भावनात्मक अपील मैडम कामा ने 1907 में स्टटगार्ट (जर्मनी) में ‘अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद सम्मेलन’ में तिरंगा झंडा फहराते हुए की थी।
भीकाजी द्वारा फहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को शामिल करने का प्रयास किया गया था। यह आज के तिरंगे झंडे से बिल्कुल अलग था। भीकाजी कामा द्वारा डिजाइन किए गए ध्वज में इस्लाम, हिंदू और बौद्ध धर्म को दर्शाने के लिए हरे, पीले और लाल रंगों का इस्तेमाल किया गया था। साथ ही बीच में देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम’ लिखा हुआ था।
यह भी पढ़ें:- जयंती विशेष: ऐसा कवि जिससे डाकुओं ने किडनैप कर के सुनी कविताएं, ठहाके लगाने के बाद दिए 100 रुपए
भीकाजी कामा के योगदान के कारण ही भारतीय तटरक्षक बल के जहाजों का नाम भी उनके नाम पर रखा गया। देश की सेवा और स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाली इस महान महिला का 1936 में मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में निधन हो गया।