रजिया सुल्तान (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: आज यानी मंगलवार 15 अक्टूबर को भारत की पहली महिला शासक की जयंती के तौर पर माना जाता है। क्योंकि 1205 में आज ही के दिन उसका जन्म हुआ था। जब दिल्ली सल्तनत के दौर में जब बेगमों को सिर्फ आराम के लिए महलों के अंदर रखा जाता था, तब रजिया सुल्तान ने महल से बाहर आकर अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और शासन की बागडोर संभाली। लेकिन वही गद्दी रजिया ने एक गुलाम से इश्क के कारण गंवा दी। क्या है पूरी कहानी आइए जानते हैं।
रजिया सुल्तान का जन्म 1236 ई. में दिल्ली सल्तनत के प्रसिद्ध शासक और इतिहास के प्रसिद्ध सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के घर हुआ था। रजिया को इतिहास में रजिया अल-दीन और शाही नाम जलालत उद-दीन रजिया के नाम से भी जाना जाता है। रजिया सुल्तान तीन भाइयों में इकलौती और सबसे योग्य थीं। रजिया सुल्तान का बचपन का नाम हफ्सा मोइन था लेकिन सभी उन्हें रजिया कहकर बुलाते थे।
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रजिया के पिता इल्तुतमिश ने बचपन में ही रजिया सुल्तान की प्रतिभा को पहचान लिया था और उन्हें अपने बेटों की तरह सैन्य प्रशिक्षण देकर उनमें एक कुशल प्रशासक की सारी खूबियां विकसित की थीं। इल्तुतमिश ने पहले अपने बड़े बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए तैयार किया था, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी अल्प आयु में ही मृत्यु हो गई। जिसके बाद इल्तुतमिश ने रजिया सुल्तान के कुशल प्रशासनिक और सैन्य गुणों को पहचान कर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। हालांकि रजिया सुल्तान के लिए दिल्ली की गद्दी पर बैठना इतना आसान नहीं था।
दरअसल 1236 ई. में उसके पिता की मृत्यु के बाद मुस्लिम समुदाय ने एक महिला को सुल्तान मानने से इंकार कर दिया और रजिया के भाई रुकनुद्दीन फिरोज को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया। लेकिन रुकनुद्दीन फिरोज एक मूर्ख और अयोग्य शासक साबित हुआ। जिस पर रजिया ने आम लोगों के समर्थन से राज्य पर हमला कर दिया और गद्दी पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद रजिया की मां और भाई दोनों की हत्या कर दी गई और 10 नवंबर 1236 ई. को रजिया सुल्तान पहली महिला शासक के तौर पर दिल्ली की गद्दी पर बैठीं।
रजिया सुल्तान ने अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर कुशलतापूर्वक दिल्ली की गद्दी संभाली और रूढ़िवादी मुस्लिम समाज को आश्चर्यचकित कर खुद को एक दूरदर्शी, न्यायप्रिय, व्यावहारिक और प्रजा हितैषी शासक साबित किया। उसने अपने राज्य का खूब विस्तार किया और विकास कार्य करवाए। राजगद्दी संभालने के बाद रजिया ने रीति-रिवाजों के विपरीत पुरुषों की तरह सैन्य कोट और पगड़ी पहनना पसंद किया। साथ ही, वह बिना घूंघट के युद्ध में भाग लेने लगी।
रजिया ने अपने बेहतरीन सैन्य कौशल के बल पर न केवल दिल्ली को सुरक्षित रखा, बल्कि अपने राज्य की कानून-व्यवस्था को भी बेहतर बनाया, शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थान बनवाए। उसने अपने राज्य में जल व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुएं और ट्यूबवेल खुदवाए और सड़कें बनवाईं। इसके अलावा, उसने हिंदू और मुस्लिम एकता के लिए काम किया और कला, संस्कृति और संगीत को भी बढ़ावा दिया।
रजिया सुल्तान के अपने गुलाम जमालुद्दीन याकूत से प्रेम की कहानी इतिहास में दर्ज है। रजिया सुल्तान को अपने सलाहकार याकूत से प्रेम हो गया था। उनका प्रेम जल्द ही परवान चढ़ने लगा, जिसके बाद कई मुस्लिम शासकों ने इसका विरोध किया। वहीं भटिंडा का गवर्नर इख्तियार अल्तुनिया भी रजिया सुल्तान की खूबसूरती से प्रभावित था और वह उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहता था, साथ ही दिल्ली पर भी कब्जा करना चाहता था। जिसके चलते अल्तुनिया ने कई अन्य विद्रोहियों के साथ मिलकर दिल्ली पर हमला कर दिया। रजिया और अल्तुनिया के बीच भीषण युद्ध हुआ। इसमें रजिया की हार हुई। याकूत को मार दिया गया और रजिया को कैद कर लिया गया।
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मौत के डर से रजिया अल्तुनिया से शादी करने के लिए तैयार हो गई। इसी बीच रजिया के भाई मैजुद्दीन बेहराम शाह ने गद्दी हथिया ली। अपना राज्य वापस पाने के लिए रजिया और उसके पति अल्तुनिया ने बेहराम शाह से युद्ध किया, जिसमें वे हार गए। उन्हें दिल्ली से भागना पड़ा और अगले दिन वे कैथल पहुंचे, जहां उनकी सेना ने उनका साथ छोड़ दिया। वहां 14 अक्टूबर 1240 को डाकुओं ने दोनों की हत्या कर दी। बाद में बेहराम को भी अयोग्यता के कारण गद्दी से हटना पड़ा।
दिल्ली की पहली महिला मुस्लिम शासक रजिया सुल्तान की कब्र को लेकर इतिहासकार आज भी बंटे हुए हैं। कब्र के स्थान को लेकर इतिहासकारों में तीन अलग-अलग मत हैं। दिल्ली, कैथल और टोंक रजिया सुल्तान की कब्र पर अपना दावा करते रहे हैं। लेकिन असली कब्र पर अभी तक फैसला नहीं हो पाया है। हालांकि, अब तक रजिया की कब्र के दावों में ये तीनों दावे सबसे मजबूत हैं। इन सभी जगहों पर स्थित कब्रों पर अरबी और फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत मिलते हैं, लेकिन ठोस सबूत नहीं मिल पाए हैं।