ममता बनर्जी, फोटो: सोशल मीडिया
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस घटना को लोकतांत्रिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन करार दिया है। ममता बनर्जी ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ जो व्यवहार किया गया, वह चौंकाने वाला और शर्मनाक है। ये व्यवहार पूरी तरह अस्वीकार्य भी है।
ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए सवाल उठाया कि अगर उमर अब्दुल्ला श्रीनगर में 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने शहीद कब्रिस्तान जाना चाहते थे तो इसमें गलत क्या था। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने से रोकना केवल दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं बल्कि एक नागरिक के संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों को भी छीनने जैसा है।
दरअसल रविवार को उमर अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस के अन्य नेताओं और विपक्षी दलों के कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। ये कदम उन्हें नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में 13 जुलाई 1931 के ‘शहीदों’ को श्रद्धांजलि देने से रोकने के लिए लिया गया था। ये वही स्थान है जहां डोगरा सेना द्वारा मारे गए 22 लोगों को दफनाया गया है। 13 जुलाई को हर साल ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता है लेकिन 2020 में प्रशासन ने इस दिन को छुट्टियों की सूची से हटा दिया।
What is wrong in visiting the graveyard of martyrs? This is not only unfortunate, it also snatches the democratic right of a citizen. What happened this morning to an elected Chief Minister @OmarAbdullah is unacceptable. Shocking. Shameful.
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) July 14, 2025
सोमवार को नजरबंदी के बावजूद उमर अब्दुल्ला श्रद्धांजलि देने के लिए नक्शबंद साहिब पहुंचे। उन्होंने एक किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलकर कब्रिस्तान तक पहुंचने की कोशिश की थी लेकिन जब उन्हें मुख्य द्वार से रोका गया तो वे दीवार फांदकर अंदर पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उमर के पिता और पार्टी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला भी स्मारक तक पहुंचे जबकि शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी से वहां पहुंचीं। अपको बता दें कि श्रीनगर के पुराने इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी और कई रास्तों को सील भी किया गया था।
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हाल ही में किए गए ममता बनर्जी के सोशल मीडिया पोस्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि इस मुद्दे पर विपक्ष की और भी पार्टियां एकजुट हो सकती हैं। अब यह मामला सियासी रूप से और भी गरमाता दिख रहा है क्योंकि एक तरफ सरकार की सख्ती है और दूसरी ओर विपक्ष इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बता रहा है।