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RSS नेता के समर्थन में उतरे अविमुक्तेश्वरानंद, संविधान पर अब होगा असली बवाल!

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने 'सेक्युलर' शब्द को लेकर बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि यह शब्द मूल रूप से भारतीय संविधान में शामिल नहीं था, बल्कि बाद में जोड़ा गया।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Jul 03, 2025 | 01:29 PM

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद (सोर्स- सोशल मीडिया)

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वाराणसी: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने ‘सेक्युलर’ शब्द को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। उनका कहना है कि यह शब्द भारतीय संविधान का मूल हिस्सा नहीं था, बल्कि इसे बाद में जोड़ा गया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ‘सेक्युलर’ शब्द संविधान की मौलिक प्रकृति के अनुकूल नहीं है, और यही कारण है कि यह मुद्दा बार-बार चर्चा का विषय बनता रहता है।

धर्म की परिभाषा देते हुए शंकराचार्य ने कहा कि धर्म का मतलब होता है सही और गलत में भेद करना, सही को अपनाना और गलत का त्याग करना। उनके अनुसार, ‘सेक्युलर’ होने का अर्थ है सही और गलत से कोई संबंध न रखना, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इसी आधार पर उन्होंने इसे भारतीय सोच और परंपरा के विपरीत बताया।

दत्तात्रेय होसबोले ने दिया था बयान

इस विषय पर हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने भी बयान दिया था। आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर उन्होंने कहा कि 1976 में लागू 42वें संविधान संशोधन के दौरान प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्द जोड़े गए थे। उनका मानना है कि अब समय आ गया है कि इन शब्दों को हटाने पर गंभीर विचार किया जाए। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है।

बीजेपी नेताओं ने किया समर्थन

इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने भी होसबोले के विचार का समर्थन किया है। केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। वहीं प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भी RSS नेता की राय को उचित ठहराया। हालांकि, अब तक भाजपा की ओर से इस विषय पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

उपराष्ट्रपति ने व्यक्ति की थी राय

इस बहस में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना को बदला नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह संविधान के मूल स्वरूप का प्रतीक है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि विश्व के किसी अन्य लोकतंत्र में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया, केवल भारत में ऐसा हुआ है।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने स्पष्ट किया कि 42वें संशोधन के ज़रिए ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए थे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ये शब्द इतने आवश्यक होते, तो संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर उन्हें मूल प्रस्तावना में शामिल करते।

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उपराष्ट्रपति ने जस्टिस हेगड़े और जस्टिस मुखर्जी के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि प्रस्तावना को संविधान की आत्मा माना गया है और इसे बदला नहीं जाना चाहिए। जस्टिस सीकरी की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान को उसकी प्रस्तावना में निहित आदर्शों के आलोक में ही पढ़ा और समझा जाना चाहिए।

Avimukteshwaranand backs rss leader real constitution debate begins

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Published On: Jul 03, 2025 | 01:29 PM

Topics:  

  • BJP
  • RSS
  • Shankaracharya Swami Avimukteshwaranand

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