राहुल गांधी (सोर्स- सोशल मीडिया)
Rahul Gandhi News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के सिखों पर दिए गए बयान के मामले में वाराणसी की विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। साथ ही, निचली अदालत को आदेश दिया है कि फैसला आने तक मामले की आगे सुनवाई न की जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन ने बुधवार को दोनों पक्षों की ओर से तीन घंटे की बहस के बाद याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद दिया।
मामले के तथ्यों के अनुसार, सितंबर 2024 में राहुल गांधी ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि भारत में सिखों के लिए माहौल ठीक नहीं है, क्या सिख पगड़ी पहन सकते हैं, कड़ा रख सकते हैं और गुरुद्वारा जा सकते हैं? उनके बयान को भड़काऊ और समाज को बांटने वाला बताते हुए नागेश्वर मिश्रा ने सारनाथ थाने में तहरीर देकर राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी।
एफआईआर दर्ज न होने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय वाराणसी की अदालत में अर्जी दाखिल की गई। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय वाराणसी ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि केंद्र सरकार की अनुमति के बिना दाखिल याचिका पोषणीय नहीं है। इसके विरुद्ध विशेष न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की गई। विशेष न्यायालय ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार और आदेश के लिए वापस भेज दिया।
राहुल गांधी ने इस आदेश को पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से चुनौती दी है। राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी ने कहा कि आरोप निराधार हैं। यहां तक कि घटना की तारीख का भी उल्लेख नहीं किया गया है। याचिका समाचार के आधार पर दायर की गई है। याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला नहीं बनता।
विशेष न्यायालय को मजिस्ट्रेट के आदेश की सत्यता, वैधता, नियमितता और औचित्य पर विचार करके विधि सम्मत आदेश पारित करना चाहिए था। यह आदेश कानूनी प्रक्रिया और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों पर विचार किए बिना दिया गया है। जो भी आरोप हैं, उनके आधार पर कोई आपराधिक मामला नहीं बनता, इसलिए विशेष न्यायालय के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और वादी पक्ष के वकील सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी व अमन सिंह बिसेन ने दलील दी कि विशेष अदालत ने गुण-दोष के आधार पर याचिका के निपटारे के लिए मामला मजिस्ट्रेट को वापस भेज दिया है। अपराध बनता है या नहीं, यह जांच से स्पष्ट होगा।
अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है, इसलिए याचिका समय से पहले दायर की गई है। विशेष अदालत को फाइल तलब करने और आदेश की वैधता पर विचार करने का अधिकार है। मजिस्ट्रेट अदालत यह देखेगी कि याचिका में लगाए गए आरोप अपराध बनाते हैं या नहीं और जांच का आदेश दे सकती है।
जांच में तथ्य और साक्ष्य एकत्र किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्क और निर्णय इस मामले से अलग हैं और वे इस मामले में लागू नहीं होते। उन्होंने कहा कि अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है। पुनरीक्षण अदालत मजिस्ट्रेट के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकती, इसलिए मजिस्ट्रेट अदालत अपने विवेक से याचिका पर निर्णय लेगी।
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इसीलिए मामला वापस भेजा गया है। इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है। याचिकाकर्ता को तर्क देना चाहिए कि अपराध बनता है या नहीं। यदि कोई अपराध बनता है, तो जांच आवश्यक है। पुनरीक्षण न्यायालय की शक्तियां कुछ हद तक सीमित हैं। वह मजिस्ट्रेट न्यायालय की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।
शिकायतकर्ता के अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा कि याचिका पोषणीय नहीं है। अंतरिम आदेश है। न्यायालय ने बयान की तिथि के बारे में जानकारी चाही, लेकिन वह स्पष्ट नहीं हो सकी। कहा गया कि टीवी और समाचार पत्रों में प्रकाशित बयान को लेकर एक अर्जी दाखिल की गई है। बयान समुदाय को भड़काने वाला है, जिसकी जांच होनी चाहिए।