लांस नायक करम सिंह
नवभारत डेस्क: भारत की आजादी के बाद एक अलग देश बना पाकिस्तान हमेशा से ही भारत के लिए नापाक चाल चलता रहा है। आजादी के बाद पाकिस्तान की गंदी नजर कश्मीर पर रही है जिसके लिए पाकिस्तानी कबाइलियों की कई सारे किस्सें आपने सुने होंगे, पढ़े होंगे। जब-जब पाकिस्तान ने कश्मीर को गंदी नजर से देखा है तब-तब भारत ने उसे मुहतोड़ जवाब दिया है।
इसी जवाबी कार्रवाई में हमारे देश के कई ऐसे जाबाज सैनिकों ने अपनी जान गवाकर देश की सुरक्षा की है। उन्हीं जाबाजों में एक थे लांस नायक करम सिंह जिनकी लड़ाई के किस्सें सैनिकों के लिए मार्गदर्शन के तौर पर साबित हुए है। तो आज हम याद करों कुर्बानी में लांस नायक करम सिंह के जीवन के कुछ अनसुने किस्सों पर प्रकाश डालेंगे।
लांस नायक करम सिंह भारत के पहले जीवित परमवीर चक्र विजेता बने थे, जिन्होने अकेले ही पाकिस्तानी सैनिकों से सीमा की रक्षा की थी। सिख रेजिमेंट के लांस नायक रहे करम सिंह ने हमले के दौरान पाकिस्तानी हमलावरों की कई कोशिशों को नाकाम कर दिया था। युद्ध में फायरिंग के दौरान वे गोली लगने से घायल हो गए थे, लेकिन उस हालत में भी वे दुश्मनों पर ग्रेनेड फेंकते रहे।
लांस नायक करम सिंह की बहादुरी के किस्सें की बात करें तो दुश्मन से लड़ते-लड़ते जब करम सिंह की राइफल की गोलियां खत्म हो गई थी तब उन्होंने खंजर से दुश्मनों को मार गिराया। करम सिंह के इसी वीरता को देखते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनके बहादुरी की गाथा गाया करते थे। जानकारी के लिए बता दें कि करम सिंह को उनकी वीरता को लेकर 1948 में ये सम्मान मिला था।
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लांस नायक करम सिंह की बहादुरी की बात करें तो सिंह को 1941 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा की ओर से उनकी विशिष्ट सेवा के लिए उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना के मेडल ऑफ ऑनर (MAM) से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया और 1948 में तिथवाल के दक्षिण में रिचमार गली में एक अग्रिम चौकी पर कब्ज़ा करने में उनकी अग्रणी भूमिका के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
चलिए अब आपको उनकी वीरगाथा में उनकी बहादुरी के किस्सें की बात बताते है। वो दिन 13 अक्टूबर 1948 का दिन था, जब बहादुर करम सिंह ने पाकिस्तानी सेना की कोशिशें आठ बार नाकाम की थी। यह वो तारीख है जब पाकिस्तान ने कश्मीर के तिथवाल में रिचमार स्ट्रीट पर हमला करके भारतीय सेना को पीछे धकेलने की कोशिश की थी।
जानकारी के लिए बता दें कि सिख रेजिमेंट के मिर्ज़ा मक्कड़ में मौजूद थे और करम सिंह फ़ॉरवर्ड पॉइंट पर मौजूद थे। उन्होंने अपनी तोपों से पाक सेना के हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान ने एक के बाद एक करीब आठ बार उनकी पोस्ट पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन वे लांस नायक करम सिंह से पार नहीं पा सके।
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चलिए अब आपको करम सिंह के जीवन की शुरूआत पर एक नजर डालते है। करम सिंह का जन्म 15 सितंबर 1915 को ब्रिटिश भारत के पंजाब के बरनाला जिले के सेहना गांव में एक सिख जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता उत्तम सिंह एक किसान थे। जानकारी के लिए बता दें कि शुरुआत में करम सिंह भी किसान बनना चाहते थे, लेकिन अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियों से प्रेरित होकर उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया। अपने गांव में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1941 में सेना में शामिल हो गए।