नायब सैनी (फोटो- सोशल मीडिया)
चंडीगढ़ः हरियाणा में सरकार के साथ ही खेला हो गया। गरीबी रेखा से नीचे का दर्जा पाने के लिए 12000 जोड़ों ने फर्जी तलाक दे डाला। इस तलाक-तलाक के खेल में सरकार को करीब 100 करोड़ की चपत लग गई। इसका नेटवर्क नूंह से झज्जर तक फैला हुआ है। मामले का खुलासा पुलिस जांच में हुआ। पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि बीपीएल वर्गीकरण के लिए जरूरी वार्षिक आय सीमा को पूरा करने के लिए परिवार पहचान पत्र (PPP) के इनकम रिकॉर्ड में हेरफेर करने के लिए फर्जी तलाक के डॉक्यूमेंट लगा दिए।
मामले में झज्जर साइबर थाना पुलिस ने नागरिक संसाधन सूचना विभाग (CRID) के जिला प्रबंधक योगेश कुमार के अलावा झज्जर में सर्विस प्रोवाइडर अमित कुमार, सिकंदर, विकास और गीता रानी और नूंह निवासी नीरज कुमार और मोहम्मद सैफ समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया है।
PPP रिकॉर्ड में हेराफेरी का आरोप
आरोपियों पर जिला कोड के साथ छेड़छाड़ और फर्जी परिवार पहचान पत्र बनाने के लिए परिवार पहचान रिकार्ड में हेरापेरी करने का आरोप है। साइबर थान के अधिकारियों ने पुष्टि की कि पुलिस ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया है और जांच जारी है।
झज्जर, रोहतक और सिरसा के फर्जी लाभार्थी
पुलिस जांच में पता चला कि परिवार की आय गलत तरीके से कम करके गरीबों के लिए चलाई गई योजनाओं का लाभ लेने के लिए हेरफेर किया गया। इसमें लगभग 12600 जोड़ों ने अपनी घोषित आय कम करने के लिए फर्जी तलाक हासिल किया। इसमें झज्जर, रोहतक, सिरसा के लोग शामिल हैं।
2 अलग-अलग परिवार आईडी बनाई गईं
जोड़ों ने कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से ऑनलाइन सिस्टम में तलाक के दस्तावेजों के रूप में खाली कागजात जमा किए। CRID के जिला प्रबंधक ने इन्हें वैध तलाक के दस्तावेजों के रूप में प्रमाणित किया। इस प्रकार दो अलग-अलग पारिवारिक पहचान पत्र बनाए गए, जिससे दंपती की आय 1.80 लाख रुपए प्रति वर्ष से कम हो गई, जिससे दोनों बीपीएल स्थिति के लिए योग्य हो गए।
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100 करोड़ रुपए का नुकसान
सूत्रों के मुताबिक इस धोखाधड़ी से सरकार को करीब 100 करोड़ रुपये का चूना लगा है। क्योंकि धोखे से लाभार्थी बने लोगों को कई बीपीएल की योजनाओं का लाभ मिला है। आरोपियों ने धोखाधड़ी करने और परिवारों को बीपीएल का दर्जा दिलाने के लिए मोटी फीस वसूली। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा की लगभग 70% आबादी बीपीएल श्रेणी में आती है, ऐसा जाहिर तौर पर बड़ी संख्या में परिवारों द्वारा अपनी आय कम बताने के कारण हुआ है।